एक-दूसरे पर जलती मशाल फेंकना ही इस मंदिर की परंपरा
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यहां की मान्यताओं के अनुसार इस मंदिर में सदियों से अग्नि केलि नाम की एक अद्भुत परंपरा चली आ रही है, जिसमें लोग अपनी जान की परवाह किए बिना एक-दूसरे पर आग फेंकते हैं। औप ये परंपरा यहां केवल एक एक दिन बल्कि पूरे 8 दिनों तर उत्सव के तौर पर मनाई जाती है।
ये अजीबो-गरीब पंरपरा दो गांव आतुर और कलत्तुर के लोगों के बीच में होती है। लोगों द्वारा बताए अनुसार अनोखी सी इस परंपरा का यह उत्सव शुरु करने से पहले देवी मां की शोभा यात्रा निकाली जाती है और उसके उपरांत तालाब में डुबकी लगाई जाती है।
बता दें कि तालाब में डुबकी लगाने के बाद दोनों गांवों के लोगों के बीच अलग-अलग दल बना लिए जाते हैं। दल बनाने के बाद हाथों में नारियल की छाल से बनी मशाल लेकर एक दूसरे के सामने खड़े हो जाते हैं। फिर एक-दूसरे पर जलती हुई मशालों को फेंका जाता है। मशालों को फेंकने का यह सिलसिला करीब 15 मिनट तक चलता है। परंतु बता दें कि इस परंपरा के तहत एक शख्स सिर्फ पांच बार ही जलती मशाल फेंक सकता है।
मान्यता
अग्नि केली की नामक की इस परंपरा को लेकर लोगों का कहना है कि ये परंपरा व्यक्ति के दुखों को दूर करने में मदद करती है। इससे व्यक्ति की आर्थिक व शारीरिक रूप से संबंधित हर तकलीफ़ दूर हो जाती है।
रंगमंच का आयोजन
दुर्गा परमेश्वरी का इस मंदिर का अपना रंगमंच केंद्र है जहां ‘यक्षगान’ किया जाता है। इसमें देवी द्वारा किए दानवों के संहार के बारे में बताया जाता है। इस यक्षगान के द्वारा देश बल्कि विदेश से लोग अभिनय, संगीत, नृत्य से सजी नाट्य कला देखने आते हैं।