July 1, 2024     Select Language
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कोख में ही आइंस्टाइन, हॉकिंग बनने की कोचिंग

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कोलकाता टाइम्स :भी अर्जुन पुत्र अभिमन्यु ने गर्भ में चक्रव्यूह ता़ेडने की कला सीखी थी, आज मां के पेट में ही बच्चों की कोचिंग शुरू हो गई है। वे मैथ्स और साइंस सीख रहे हैं। गर्भवती महिलाओं के माध्यम से एक्सपर्ट गर्भस्थ शिशु को पढ़ा रहे हैं और अलग–अलग जानकारियां दे रहे हैं ताकि पैदा होते ही वह दूसरों से बेहतर हो। प्रैग्नेंट महिलाएं भी इसे लेकर उत्साहित हैं और सेंटर्स का सहारा ले रही हैं।

यह होती है प्रक्रिया : पढऩे के लिए ब्रेन–आई को–ऑर्डिनेशन की जरूरत होती है। ब्रेन सेल्स और आंखें गर्भ के तीसरे महीने तक विकसित हो चुकी होती हैं। यही कारण है कि गर्भकाल के तीसरे महीने से बच्चे के ‘विजुअल आई पाथ वे’ को स्टीम्यूलेट किया जा सकता है। इस प्रक्रिया के तहत मां पेट पर हाथ रखकर बच्चे को शब्द लिखे हुए फ्लैश कार्ड और अलग–अलग नंबर्स के डॉट कार्ड दिखाते हुए जोर से बात करते हुए उस कार्ड के बारे में बताती है। वास्तविक रूप में इसके जरिए बच्चे को कुछ सिखाया नहीं जाता बल्कि उसे वड्र्स और नंबर्स का एक्सपोजर दिया जाता है ताकि उसके सेंस स्टीम्यूलेट हो।

बड़े अक्षर और आकर्षक रंग : छोटे बच्चे हर चीज को विजुवलाइज करते हैं। यही कारण है कि वे भले ही पढऩा 4 साल की उम्र के बाद से सीखें, परंतु ब़$डे अक्षर, विज्ञापन या रिपीटेटिव साइन्स को आसानी से पहचान लेते हैं। इस थ्योरी को ध्यान में रखते हुए गर्भावस्था के दौरान बच्चों को अक्षर के बजाए सीधे शब्द बताए जाते हैं, जिन्हें वे विजुवलाइज करके किसी चीज से रिलेट कर लें। सफेद कागज पर तीन इंच से ब़$डे लाल रंग में लिखे अक्षर या नंबर्स के डॉट्स बच्चों को आसानी से आकषिर्षत कर लेते हैं। वैज्ञानिक रिसर्च के अनुसार गर्भ के तीसरे महीने से 4 साल की उम्र तक बच्चों को इस तरह 10 से ज्यादा भाषषाएं सिखाई जा सकती हैं।

रीयल वल्र्ड से करें कनेक्ट : पैरेंटिंग एक्सपर्ट और लाइफ कोच अभिषषेक पसारी प्रैग्नेंट लेडीज को 6 हफ्तों की ट्रेनिंग के दौरान गर्भ में बच्चों को बिहेवियर, डिफरेंट लैग्वेंज और मैथ्स सिखाने की टेक्नीक्स बताते हैं। ट्रेनिंग के दौरान सीखी गई टेक्नीक्स को तीन महीने की प्रैग्नेंसी से लेकर आठ साल के बच्चों तक पर अप्लाए किया जाना होता है। पसारी कहते हैं कि बच्चे को जब भी कुछ सिखाएं या बताएं तो उसे रीयल वल्र्ड से कनेक्ट करें। अक्षरों के अपने अर्थ नहीं होते जबकि शब्दों के होते हैं। यही कारण हैं कि प्रैग्नेंसी के दौरान पहले अक्षर सिखाने के बजाए हम सीधे शब्दों के फ्लैश कार्ड के जरिए लैग्वेंज ट्रेनिंग शुरू करते हैं। मां अपने पेट पर हाथ रखकर बेबी से बात करते हुए यदि पंचतंत्र की कहानियां पढ़ेगी और पढ़ते समय उस लाइन पर अंगुली फेरती जाएगी तो बच्चा भी तेजी से पढऩा सीखेगा। ब़$डे होने पर उसे पढऩा पसंद होगा। आप जो करते हैं आपका बच्चा भी वही करता है। यह प्रक्रिया गर्भावस्था से ही शुरू हो जाता है। इसी तरह मैथ्स सिखाते वक्त हम नंबरों के बजाए सीधे डॉट्स और असली वस्तुओं के जरिए सीधे काउंटिंग सिखाते हैं।

9 महीने का बच्चा भी पहचानता है शब्द :सेटेलाइट एजुकेशन सेक्टर में काम रही अनामिका गिरधानी कहती है कि गर्भावस्था के दौरान मैंने लैग्वेंज और मैथ्स स्किल्स डेवलप करने के लिए बच्चे को काड्र्स दिखाना शुरू किए। यह प्रैक्टिस डिलेवरी के बाद भी जारी है। मेरा दो साल और 10 महीने का बेबी फ्लैश कार्ड के बाहर लिखे हुए वर्ड और नंबर्स भी पहचान लेता है। इसी तरह अदिति शाह का 9 महीने का बेबी भी वड्र्स से फैमिलीयर हो चुका है। वह अलग–अलग शब्दों में अंतर कर सकता है। उम्र के मुताबिक उसका अटेंशन और फोकस बाकी बच्चों से ज्यादा है।

मेडिकल से लेकर कॉमर्स तक की जानकारी :डायमंड ज्वेलरी डिजाइनर शिखा मसंद कहती हैं कि मेरा बैकग्राउंड कॉमर्स का काम है, जबकि मेरे पति डॉक्टर हैं। मेरी पहली प्रैग्नेंसी के दौरान वे हर रोज अपने पैशेंट्स और काम के बारे में बच्चे को बताते थे। अब मेरी बेटी वान्या 4 साल की हो चुकी है और उसे हम दोनों की फील्ड का अच्छा नॉलेज हैं। केजी फस्र्ट में पढ़ते हुए वह अपनी क्लास की इकलौती स्टूडेंट है जो पूरी तरह अंग्रेजी में बात करती है, साथ ही उसे हिंदी और संस्कृृत भी आती है। दूसरी प्रैग्नेंसी के दौरान भी यह प्रैक्टिस कर रही हूं।

भारतीय परंपरा विदेशी रिसर्च :भारत में गर्भ संस्कार की अवधारणा प्राचीन काल से चली आ रही है। महाभारत काल में अर्जुन ने सुभद्रा को गर्भावस्था के दौरान चक्रव्यूह में प्रवेश करने की प्रक्रिया बताई थी, जिसे अभिमन्यु ने गर्भ में ही सीख लिया था। भारतीय परंपरा में गर्भावस्था के दौरान इसलिए मां को अच्छी किताबें पढऩे और अच्छा सोचने के लिए कहा जाता है। नए संदर्भ में फिलेडेल्फिया ग्लैन डॉमेन ने इस पर रिसर्च किया।

तीसरे माह से शुरू हो जाती है लर्निंग प्रोसेस :गर्भ के 6 हफ्ते से बच्चे का दिल धड़कना शुरू कर देता है और तीसरे महीने से लर्निंग प्रोसेस शुरू हो जाती है। मां उससे बात कर सकती है और बेबी मां को रिस्पांस भी करना शुरू कर देता है। यानी गर्भ के तीसरे महीने से आप बच्चे को बहुत कुछ सिखा सकते हैं।

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