May 16, 2024     Select Language
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भारत ने चीन को दिया दिवाली पर 50 हजार करोड़ का नुकसान का तौफा

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कोलकाता टाइम्स : रोशनी का त्योहार दीपावली, जिसका नाम ही दीपों को उज्जवल करने के लिए पड़ा, उसमें बीते कुछ सालों में चीनी लाइटों और झालरों ने घुसपैठ कर ली थी. लेकिन पिछले साल से सरहद पर चीन की चालबाजियों के कारण लोगों ने आत्मनिर्भर भारत और Vocal For Local को बढ़ाने का जो संकल्प लिया था उसका असर इस साल दीवाली के त्योहार में भी दिख रहा है. दीपों के त्योहार दीपावली में दीप (मिट्टी के दीये) की वापसी होती दिख रही है.

दिल्ली  के उत्तम नगर का बाजार दीपावली के लिए दीयों की खरीदारी करने वालों से पटा पड़ा है. दीये खरीदने के लिए लोगों की भीड़ भी ऐसी जो सालों बाद देखी गई हो. दिल्ली में रहने वाली ललिता अरोड़ा के मुताबिक, बचपन में वो दीपावली दीयों के साथ ही मनाती थीं लेकिन बच्चों की जिद और सस्ती होने के कारण कुछ सालों से उनका परिवार दीपावली पर चीनी झालरों से अपना घर रोशन कर रहा था. लेकिन इस साल उन्होंने संकल्प लिया है कि चीन को आर्थिक जवाब देने के लिए उनके घर को मिट्टी के दीये जलाकर ही रोशन किया जाएगा, जिससे उनका घर भी रोशन हो और चीन को मुंहतोड़ भी जवाब दिया जा सके. उत्तम नगर में मिट्टी के सामान की दुकान चलाने वाले व्यापारी राजीव कुमार के मुताबिक, इस साल लोगों की भीड़ मिट्टी के दीये लेने आ रही है जो सच में अद्भुत है. मिट्टी के दीये की डिमांड इतनी है कि दुकानदार पूरा ही नहीं कर पा रहे हैं. राजीव कुमार ने सोचा था कि ज्यादा से ज्यादा इस साल चीन के सामान के बहिष्कार की वजह से डिमांड पिछले साल के मुकाबले डेढ़ गुना बढ़ेगी लेकिन दीपावली आते-आते मिट्टी के दीयों की डिमांड ने रिकॉर्ड तोड़ दिया और जितने मिट्टी के दीये उन्होंने साल 2019 और 2020 में कुल मिलाकर बेचे थे उससे ज्यादा तो अकेले इस साल दीपावली से पहले ही बेच चुके हैं.दिल्ली का उत्तम नगर क्योंकि मिट्टी के सामान का एक मशहूर और बड़ा बाजार है तो यहां दीपावली के लिए डिजाइनर दीये लेने लोग दूर-दराज से भी आ रहे हैं. गुरुग्राम में रहने वाले राजेश 22 किलोमीटर दूर का सफर तय करके सिर्फ दिल्ली के उत्तम नगर में मिट्टी के डिजाइनर दीये लेने आए ताकि वो पिछले साल लिए गए अपने चीनी माल का बहिष्कार करने और स्वदेशी कारीगर की मदद करने के संकल्प को पूरा कर सकें. राजेश के मुताबिक, दीपावली तो दीपों का ही त्योहार है वो तो हम भारतीयों की गलती थी जो चीनी लाइटों और झालरों के चक्कर में पड़ गए, लेकिन अब भारतीय फिर से दीयों की तरफ बढ़ रहे हैं.

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