इम्यूनिटी बढ़ाता है ये जादुई कबसुरा कुदिनेर का काढ़ा, जानें कैसे बनाएं
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कोलकाता टाइम्स :
कबसुरा कुदिनेर औषधि का उपयोग सिद्ध चिकित्सकीय प्रणाली में फ्लू और सर्दी जैसे सामान्य श्वसन रोगों के प्रभावी इलाज के लिए किया जाता है। सिद्ध चिकित्सा में सांस से कोई भी बीमारी हो जैसे कि गंभीर कफ, सूखी और गीली खांसी और बुखार शामिल हैं। इस औषधी में एंटी-इंफ्लेमटरी, एनाल्जेसिक, एंटी-वायरल, एंटी-बैक्टीरियल, एंटी-फंगल, एंटीऑक्सिडेंट, हेपाटो-प्रोटेक्टिव, एंटी-पाइरेक्टिक, एंटी-एस्थमेटिक और इम्यूनोमॉड्यूलेटरी गुण होते हैं।
कई अध्ययनों ने खुलासा हुआ है कि कबसुरा कुदिनेर अपने एंटी-इंफ्लेमटरी गुणों के कारण सांस लेने के दौरान शरीर में सांस पहुंचाने वाले हवा मार्ग में सूजन को कम करने में सहायक होता है जबकि एंटीबैक्टीरियल और एंटीपीयरेटिक गुण बुखार को कम करते हैं।
कबसुरा कुदिनेर को आमतौर पर श्वसन संबंधी बीमारियों जैसे सर्दी और फ्लू के लिए उपयोग किया जाता है। यह एक प्रसिद्ध सिद्ध औषधि है। इसमें अदरक, लौंग, अजवाईन आदि सहित 15 तत्व होते हैं। हर एक तत्व की अपनी विशेषता होती है। लेकिन यह चूर्ण फेफड़ों को स्वस्थ रखने, श्वसन तंत्र में सुधार और खांसी, सर्दी, बुखार और अन्य श्वसन संक्रमण जैसी संक्रामक स्थितियों के इलाज के लिए बड़े पैमाने पर काम करती है। अपने चिकित्सीय और उपचारात्मक गुणों के कारण फ्लू के समय में इसका काफी उपयोग किया जाता है।
इन सामग्रियों से मिलकर तैयार होता है कबुसरा कुदिनेर
अदरक (चुक्कू) मुरलीवाला लौंगम (पिप्पली) लौंग (लवंगम) दुशाला (सिरुकनोरी वेर) Akarakarabha कोकिलाक्ष (मुल्ली वर्) हरितकी (कडुक्कैथोल) मालाबार नट (अडातोदाई इलाई) अजवाईन (कर्पूरवल्ली) कुस्टा (कोस्तम) गुदुची (सेंथिल थांडू) भारंगी (सिरुथेक्कु) कालमेघ (सिरुथेक्कु) राजा पात (वट्टथिरुपि) मस्ता (कोरई किजांगु)
इस तरीके से बनाए
जड़ी-बूटियों को सूखाएं और मोटे पाउडर के रुप में पीस लें। अब इस पाउडर में मौजूद नमी को सुखाने के लिए इसे धूप में सुखा दें। अब इस पाउडर में पानी मिलाएं और उसे तब तक गर्म करें, जब तक पानी शुरुआती मात्रा के आधे से आधे न हो जाएं। इस चूर्ण में बचें हुए अवशेषों को हटाने के लिए एक मलमल के कपड़े का उपयोग करके जलीय काढ़े को छान लें। अब इस फिल्टर लिक्विड को संग्रहित करने के साथ ही इसके शेल्फ जीवन के कारण 3 घंटे के भीतर खपत कर लें।
कफ दोष को करता बैलेंस
‘काबा सुरम कुदिनेर’ का सिद्ध चिकित्सा में मतलब है कि कफ के अत्यधिक होने के वजह से होने वाली समस्या को इस चूर्ण के माध्यम से बैलेंस किया जाता है। कफ दोष की समस्या में सांस संबंधी समस्या देखने को मिलती हैं। यह चूर्ण सांस संबंधी समस्या से जुड़े लक्षण जैसे बुखार, खांसी और ठंड को कम करता हैं, खासतौर पर फ्लू को।
कितनी मात्रा में लें
रोजाना इस चूर्ण को डॉक्टर के निर्देशानुसार दिन में दो बार 25-50 मिलीलीटर लें। 200 मिली पानी में 5-10 ग्राम इस चूर्ण को डालें और इसे कम आंच में तब तक उबालें जब तक कि ये पानी में मिलकर 50 मिली न हो जाए।