ये लाड़ले वक़्त से पहले हो गये गुमनाम
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कोलकाता टाइम्स :
ये एक ऐसा मुद्दा है जो हमेशा फिल्मी दुनिया में छाया रहता है। सिल्वर स्क्रीन पर आने के बाद परिवार के नाम की ज़िम्मेदारी होती है। अगर नेपोटिज़्म से कोई स्टार बन सकता तो हर स्टार का बेटा स्टार ही होता। करीना और करिश्मा, हिंदी सिनेमा के आला कुनबे कपूर फैमिली से संबंध रखती हैं। दोनों रणधीर कपूर और बबीता की बेटी हैं और अपने-अपने वक़्त की सुपरस्टार रही हैं।
जब भी नेपोटिज़्म पर बहस छिड़ती है तो इसके केंद्र में जाने-अनजाने वो स्टार किड्स आ जाते हैं, जिन्होंने आंखें खोलते ही लाइट, कैमरा, एक्शन की आवाज़ें सुनी हैं। फ़िल्मों में इनके करियर की शुरुआत भले ही आसान मानी जाती हो, मगर एक वक़्त के बाद संघर्ष इनकी नियति बन जाता है। अपने पेरेंट्स की लेगेसी का बोझ और दर्शकों की अपेक्षाएं इन्हें पहली ही फ़िल्म से पैकेज के रूप में मिलती हैं और जब ये दर्शकों की उम्मीदों पर खरे नहीं उतरते तो दर्शक भी इन्हें ठुकराने में देर नहीं लगाते।
फ़िल्मी परिवारों से संबंध रखने वाले ऐसे ही कुछ एक्टर्स, जिन्हें फ़िल्मी दुनिया विरासत में मिली, मगर इस दुनिया में इनकी मौजूदगी ‘गेस्ट अपीयरेंस’ बनकर रह गयी है। मेहमान की तरह कभी-कभार दिखायी दे जाते हैं और फिर ग़ायब हो जाते हैं। आइए, जानते हैं ऐसे ही एक्टर्स के बारे में, जो नेपोटिज़्म की बहस को ये एंगल देते हैं- Survival Of The Talent.
पुरु राजकुमार: बात एक्टिंग के साथ स्टाइल और डायलॉगबाज़ी की हो तो राज कुमार के सामने शायद ही कोई ठहरता हो। उनके बेटे पुरु राजकुमार ने 1996 की फ़िल्म बाल ब्रह्मचारी से बॉलीवुड में क़दम रखा, मगर राज कुमार जैसा असर वो पैदा ना कर सके। आख़िरी बार पुरु अजय देवगन की फ़िल्म एक्शन जैक्सन में दिखायी दिये थे। उससे चार साल पहले सलमान ख़ान की फ़िल्म वीर में भी पुरु नज़र आए थे।
ज़ाएद ख़ान: अपने दौर के हैंडसम एक्टर संजय ख़ान के बेटे ज़ाएद ख़ान ने 2003 की फ़िल्म चुरा लिया है तुमने से फ़िल्मी पारी शुरू की। मगर, ज़ाएद का करियर भी उस तरह शेपअप नहीं हुआ, जैसा एक स्टार किड का होना चाहिए। ज़ाएद का पर्दे पर आना-जाना लगा रहता है। बतौर लीड उनकी आख़िरी फ़िल्म 2015 में आयी शराफ़त गयी तेल लेने है।
राहुल खन्ना: विनोद खन्ना के छोटे बेटे राहुल खन्ना बॉलीवुड में गेस्ट अपीयरेंस ही देते हैं। राहुल की आख़िरी स्क्रीन प्रेजेंस 2014 की फ़िल्म फ़ायरफ्लाइज़ है। इससे पहले वो लव आज कल और वेकअप सिड में नज़र आये थे, जो 2009 में रिलीज़ हुई थीं।
लव सिन्हा: शत्रुघ्न सिन्हा ने अपनी फ़िल्मों और पर्सनेलिटी के ज़रिए एक अलग ही मुक़ाम पाया है, लेकिन उनके बेटे लव सिन्हा का करियर पहली फ़िल्म के बाद ही ठहर गया। लव ने 2010 की फ़िल्म सदियां से डेब्यू किया, मगर उनका करियर कुछ साल भी नहीं चला। हालांकि डेब्यू के सात साल बाद लव को जेपी दत्ता की फ़िल्म पलटन मिल गयी है।
हरमन बावेजा: फ़िल्म प्रोड्यूसर-डायरेक्टर हैरी बावेजा के बेटे हरमन बावेजा ने 2008 में लव स्टोरी 50-50 से डेब्यू किया था। इसके बाद वो 2009 में व्हाट्स योर राशि और विक्ट्री में नज़र आये। हरमन को आख़िरी बार 2014 में ढिश्कियायूं में पर्दे पर देखा गया। मगर, इस फ़्लॉप के बाद हरमन अभी तक पर्दे पर नहीं लौटे हैं।
जैकी भगनानी: जैकी भगनानी मशहूर प्रोड्यूसर वाशु भगनानी के बेटे हैं। जैकी ने 2009 की फ़िल्म कल किसने देखा से बतौर हीरो पारी शुरू की। इसके बाद वो 5 फ़िल्मों में और दिखायी दिये। जैकी आख़िरी बार 2015 की फ़िल्म वेल्कम टू कराची में अरशद वारसी के साथ पर्दे पर दिखे। बतौर एक्टर जैकी की स्थिति भी अब बॉलीवुड में मेहमानों जैसी ही है।
महाअक्षय चक्रवर्ती: मिथुन चक्रवर्ती हिंदी सिनेमा के उन एक्टर्स में शामिल हैं, जिन्होंने अपने टेलेंट से नाम कमाया है। मगर, बेटे महाअक्षय चक्रवर्ती पापा की कामयाबी और शोहरत से बहुत पीछे रह गये हैं। 2008 में महाअक्षय ने जिम्मी से बॉलीवुड में डेब्यू किया। फ़िल्म फ़्लॉप रही और महाअक्षय के स्टार बनने के सपने टूट गये। फिर भी कोशिशें जारी रखीं। उनकी आख़िरी फ़िल्म इश्क़ेदारियां है, जो 2015 में आयी, मगर महाअक्षय आज भी बॉलीवुड के गेस्ट स्टार ही हैं।
फ़रदीन ख़ान: फ़िरोज़ ख़ान के बेटे फ़रदीन ख़ान ने 1998 की फ़िल्म प्रेम अगन से बॉलीवुड में डेब्यू किया। शुरू से ही फ़रदीन का करियर वो रफ़्तार नहीं पकड़ सका, जिसकी उनसे उम्मीद थी। फ़रदीन 2010 की फ़िल्म दूल्हा मिल गया में आख़िरी दफ़ा पर्दे पर दिखायी दिये। फ़िलहाल बतौर लीड एक्टर उनकी वापसी की संभावना बहुत कम है। यानि बॉलीवुड में उनकी प्रेजेंस भी मेहमान की तरह हो चली है।
तुषार कपूर: सत्तर-अस्सी के दशक में जीतेंद्र का नाम सुपर स्टार्स में शामिल हो चुका था। हिंदी सिनेमा की कई अहम और हिट फ़िल्मों का जीतेंद्र हिस्सा रहे। मगर उनके बेटे तुषार कपूर वैसे करिश्मा पैदा नहीं कर सके। तुषार ने 2001 में मुझे कुछ कहना है फ़िल्म से बतौर एक्टर करियर शुरू किया, मगर वो हिंदी सिनेमा के भरोसेमंद एक्टर्स में शामिल नहीं हो सके। कुछ फ़िल्मों में लीड निभाने के बाद तुषार साइड किक बनकर रह गये। 2017 में तुषार गोलमाल अगेन में अपने पुराने रोल में दिखे थे।
बॉबी देओल: नेपोटिज़्म फेल होने का बॉबी देओल भी एक उदाहरण कहे जा सकते हैं। हिंदी सिनेमा के लीजेंडरी एक्टर धर्मेंद्र के छोटे बेटे होने का कुछ ख़ास फ़ायदा बॉबी को नहीं मिला। हालांकि करियर के शुरुआती दौर में बॉबी ने उल्लेखनीय फैन फॉलोइंग जुटा ली थी, मगर पर्दे पर वो इसे लंबे समय तक कायम नहीं रख सके। शोहरत और कामयाबी के मामले में वो अपने बड़े भाई सनी देओल से भी पीछे छूट गये। बॉबी ने 1995 में बरसात से ट्विंकल खन्ना के साथ डेब्यू किया था। बॉबी को बॉलीवुड में एक्टिंग के एक मुकम्मल पैकेज के तौर पर लांच किया गया था। वो डांस करते थे और एक्शन भी करते थे, मगर सदी बदलते-बदलते बॉबी के करियर की दिशा भी बदल गयी। उनकी ज़्यादातर फ़िल्में फ्लॉप होने लगीं। 2013 में वो अपनी होम प्रोडक्शन यमला पगला दीवाना2 में नज़र आये। इसके बाद 2017 में वो भाई सनी देओल के साथ पोस्टर बॉयज़ में दिखे। हालांकि 2018 बॉबी के लिए बेहतर लग रहा है। इस साल वो सलमान ख़ान के साथ रेस3 और अपनी होम प्रोडक्शन यमला पगला दीवाना फिर से में नज़र आएंगे।