ट्रेन ड्राइवर बनना चाहते थे यह महान अभिनेता
लगता है जैसे ओम पुरी को अपनी मौत का अंदाजा हो गया था? क्योंकि मौत से कुछ रोज़ पहले ही इस कलाकार ने एक इंटरव्यू में खुद कहा कि मेरे जाने के बाद मेरा योगदान याद किया जाएगा। ओम पुरी ने एक समाचार एजेंसी को दिए अपने एक इंटरव्यू में कहा था, “मेरे दुनिया छोड़ने के बाद, मेरा योगदान दिखेगा और युवा पीढ़ी में विशेष रूप से फ़िल्मी छात्र मेरी फ़िल्में जरूर देखेंगे’। समानांतर सिनेमा से लेकर व्यावसायिक सिनेमा में अपने अभिनय की छाप छोड़ चुके ओम पुरी ने उस बातचीत में कहा, “मेरे लिए वास्तविक सिनेमा 1980 और 1990 के दशक का था, जब श्याम बेनेगल, गोविंद निहलानी, बासु चटर्जी, मृणाल सेन और गुलजार जैसे फ़िल्म -निर्देशकों ने उल्लेखनीय फ़िल्में बनाईं’। यह उनका आखिरी इंटरव्यू था।
बचपन में ओम पुरी जिस घर में रहते थे उसके पीछे एक रेलवे यार्ड था। रात के समय ओम घर से भागकर ट्रेन में सोने चले जाते थे। उन्हें ट्रेन से बड़ा लगाव था। इसीलिए वो बड़े होकर ट्रेन ड्राइवर बनना चाहते थे। ओम पुरी ने बचपन में काफी वक़्त अपनी नानी और मामा के साथ गुज़ारा। वहां उन्हें कुछ कड़वे अनुभव भी हुए। बहरहाल, वहीं रहते हुए उनका रुझान अभिनय की तरफ मुड़ा।
ओम पुरी ने दिल्ली के नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा के एल्युमनी की लिस्ट में भी जगह बनाई जहां एक्टर नसीरुद्दीन शाह उनके सहपाठी हुआ करते थे। ओम पूरी के मुताबिक वो शुद्ध शाकाहारी थे लेकिन नसरुद्दीन शाह ने उन्हें नॉन वेज खाना सिखाया। दोनों काफी अच्छे दोस्त थे और दोनों ने एक साथ कई फ़िल्मों में काम भी किया है।
ओम पुरी ने साल 1976 में मराठी फ़िल्म ‘घासीराम कोतवाल’ से डेब्यू किया। ओम पुरी को फ़िल्म ‘आरोहण’ और ‘अर्ध सत्य’ के लिए बेस्ट एक्टर का नेशनल अवार्ड भी मिला और एक इंटरव्यू के दौरान ओम पुरी ने कहा, ‘अमिताभ बच्चन महान एक्टर हैं और मैं उनका शुक्रगुजार हूं क्योंकि उन्होंने ‘अर्ध सत्य’ फ़िल्म करने से इंकार कर दिया था।’
ओम पुरी बड़े पर्दे के साथ-साथ छोटे पर्दे पर भी लगातार सक्रिय रहे। साल 1988 में ओम पुरी ने दूरदर्शन की मशहूर टीवी सीरीज ‘भारत एक खोज’ में कई भूमिकाएं निभायी जिसे दर्शकों ने काफी पसंद किया।
ओम पुरी ने दो शादियां की थीं। उनकी दूसरी वाइफ नंदिता पूरी ने उनकी बायोग्राफी ‘Unlikely Hero ‘ का विमोचन 23 नवंबर 2009 को किया।
ओम ने अपने कैरियर में ‘मिर्च मसाला’ ‘ धारावी’ ,अर्ध सत्य’ ‘गुप्त’ ‘माचिस ‘ ‘धूप’ जैसी बेहतरीन हिंदी फ़िल्मों के साथ-साथ अंग्रेजी और अन्य भाषाओं की फ़िल्में भी की हैं। ओमपुरी ऐसे अभिनेताओं में से एक हैं जिन्होंने इंटरनेशल लेवल पर अपनी पहचान बनाई है। ‘ईस्ट इज ईस्ट’, ‘सिटी ऑफ ज्वॉय’, ‘वुल्फ’, ‘द घोस्ट एंड डार्कनेस’ जैसी हॉलीवुड फ़िल्मों में भी उन्होंने अपने उम्दा अभिनय की छाप छोड़ी है।
पिछले साल सलमान ख़ान की फ़िल्म ‘ट्यूबलाइट’ में भी नज़र आने वाले ओम पुरी ने हॉलीवुड एनिमेशन फ़िल्म ‘जंगल बुक’ में बघीरा नामक किरदार को अपनी आवाज भी दी थी जिसे खासा पसंद किया गया। उन्हें वर्ष 1990 में भारत के चौथा सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्मश्री से सम्मानित किया गया।
वर्ष 2004 में उन्हें ब्रिटिश फ़िल्म उद्योग की सेवाओं के लिए ऑर्डर ऑफ द ब्रिटिश एंपायर का मानद अधिकारी बनाया गया था। फ़िल्मों की उनकी उनकी यात्रा हमेशा शानदार रही है। उनके साथ निजी जीवन और सार्वजनिक जीवन में भी कई विवाद जुड़े रहे। लेकिन, यह भी सच है कि ओम पुरी अपने अंतिम समय तक अपने काम और शब्दों को लेकर निडर रहे।