February 23, 2025     Select Language
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रावण की भूल है यह मंदिर 

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कोलकाता टाइम्स :
सावन के महीने में ज्योतिर्लिगों का और ज्यादा महत्व बढ़ जाता है क्योंकि इस दौरान मंदिरों में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। झारखण्ड राज्य के पूर्व में सन्थाल परगना में स्थित वैद्यनाथ मंदिर जिसे वैजनाथ के नाम से भी जाना जाता है, ऐसा ही एक मंदिर है जिसे समस्त ज्योतिर्लिगों की गणना में नौवां स्थान प्राप्त है। वैद्यनाथ में ज्योतिर्लिग स्थित होने के कारण इस जगह को हम देवघर के नाम से भी जानते हैं। ऐसी मान्यता है कि श्री वैद्यनाथ ज्योतिर्लिग के दर्शन व पूजन से रोगों से मुक्ति मिलती है। इस वजह से वैद्यनाथ मंदिर में मौजूद शिवलिंग़ को ‘कामना लिंग’ भी कहा गया है।
पौराणिक कथा
मान्यता है कि एक बार असुर सम्राट रावण ने हिमालय पर जाकर महादेव को खुश करने के लिए घोर तपस्या की और अपने सिर काट-काटकर शिवलिंग पर चढ़ाने शुरू कर दिए। कहा जाता है कि रावण ने एक-एक करके अपने नौ सिर चढ़ा दिए। जब दसवें सिर की बारी आई तो महादेव प्रसन्न होकर प्रकट हो गए। जैसे ही भगवान शिव प्रकट हुए रावण के दसों सिर पहले जैसे हो गए। इसके बाद भगवान शिव ने रावण से वरदान मांगने को कहा। रावण ने भगवान शिव से आग्रह किया कि मुझे शिवलिंग को लंका में स्थापित करने की अनुमति प्रदान करें।
भगवान शिव ने रावण के आग्रह को मान तो लिया लेकिन साथ में चेतावनी भी दी कि यदि तुम इस शिवलिंग को ले जाते समय रास्ते में धरती पर रखोगे तो यह वहीं अचल यानी स्थापित हो जाएगा। आखिरकार वही हुआ। शिवलिंग को ले जाते समय रावण ने जैसे ही चिताभूमि में प्रवेश किया उसे बहुत तेज लघुशंका (पेशाब) लगी। वह शिवलिंग को एक अहीर को पकड़ा कर लघुशंका करने चला गया। शिवलिंग इतना भारी था कि अहीर ने उसे भूमि पर रख दिया। इस तरह से शिवलिंग वहीं पर स्थापित हो गया और रावण खाली हाथ लंका की ओर चला गया। पुराणों में ऐसा उल्लेख है कि रावण द्वारा शिवलिंग के रखे जाने और उसके चले जाने के बाद भगवान विष्णु स्वयं इस शिवलिंग के दर्शन के लिए पधारे थे। तब भगवान विष्णु ने शिव की षोडशपचार पूजा की थी और शिव ने विष्णु से यहां एक मंदिर निर्माण की बात कही थी। इसके बाद विष्णु के आदेश पर भगवान विश्वकर्मा ने आकर इस मंदिर का निर्माण किया था।
वैद्यनाथ धाम मंदिर के मध्य प्रांगण में शिव का भव्य 72 फीट ऊंचा मंदिर है जिसमें एक घंटा, एक चंद्रकूप और मंदिर में प्रवेश के लिए एक विशाल सिंह दरवाजा बना हुआ है। शिवलिंग का ऊपरी हिस्सा हल्का सा टूटा हुआ है, जिसके बारे में बताया जाता है कि जब रावण इसे जड़ से उखाड़ने की कोशिश कर रहा था, तब यह टूट गया था। पार्वती जी का मंदिर शिव जी के मंदिर से जुड़ा हुआ है। प्रांगण में अन्य 22 मंदिर स्थापित हैं। मंदिर के नजदीक शिवगंगा झील है।
सावन माह के अवसर पर हर साल लाखों श्रद्धालु इस पवित्र जगह की यात्रा करते हैं। जुलाई से अगस्त तक के बीच चलने वाले सावन मेला में दूर-दूर से देश-विदेश के श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं। इस दौरान भगवान भोलेनाथ के भक्त 105 किलोमीटर दूर बिहार के भागलपुर के सुल्तानगंज में बह रही उत्तर वाहिनी गंगा से जल भर कर पैदल यात्रा करते हुए यहां आते हैं और बाबा का जलाभिषेक करते हैं। पवित्र जल ले जाते समय इस बात का ध्यान रखा जाता है कि पात्र जिसमें गंगाजल रखा गया है वह कहीं भी भूमि से न सटे।
वैद्यनाथ मंदिर की यात्रा तब तक अधूरी मानी जाएगी, जब तक आप वासुकिनाथ (बासुकीनाथ) मंदिर में दर्शन के लिए नहीं जाते। यह मंदिर शिव मंदिर के नाम से जाना जाता है। यह देवघर से महज 42 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। बैद्यनाथ मंदिर जाने वाले श्रद्धालु जलाभिषेक के लिए बासुकीनाथ मंदिर भी जाते हैं। नंदन हिल, नौलखा मंदिर, कुंदेश्वरी मंदिर, नव दुर्गा मंदिर, सतसंग आश्रम, मंदिर से 10 किलोमीटर की दूरी पर तपोवन, 17 किलोमीटर की दूरी पर त्रिकुट पर्वत देवघर के प्रमुख पर्यटक स्थल हैं।
बाबा वैद्यनाथ धाम पहुंचने के लिए नजदीकी एयरपोर्ट पटना है, जिसकी दूरी 281 किलोमीटर है। पटना पूरे देश से सुसंगत रूप से जुड़ा हुआ है। यहां का निकटवर्ती रेलवे स्टेशन देवघर जसिडीह है जो वैद्यनाथ से लगभग 5 किलोमीटर की दूरी पर है। कलकत्ता, गिरिडीह, पटना, दुमका, गया, रांची और मधुपुर से देवघर के लिए नियमित रूप से बसें चलाई जाती हैं।

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