पुरुषों के लिये नर्क से कम नहीं ‘कोहिनूर’, जबकि महिला शासक…
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कोलकाता टाइम्स :
देखने में बेइंतहा खूबसूरत ‘कोहिनूर’ का इतिहास काफी काला रहा है, इसी कारण ब्रिटेन के इतिहासकार विलियम ने इसके इतिहास को खूनी कहा है।
जिसके पास कोहिनूर है, उसकी बर्बादी निश्चित उन्होंने अपनी किताब ‘कोहिनूर: द स्टोरी ऑफ द वर्ल्ड्स मोस्ट इनफेमस डायमंड’ में लिखा है कि जिसके पास कोहिनूर है, उसकी बर्बादी निश्चित है इसलिए इससे बचकर रहना होगा। बाबर और हुमायुं बाबर और हुमायुं, दोनों ने ही अपनी आत्मकथाओं में कोहिनूर का जिक्र किया है जिसके मुताबिक यह खूबसूरत हीरा सबसे पहले शक्तिशाली ग्वालियर के कछवाहा शासकों के पास था जिन्हें कि बेहद ही कमजोर समझे जाने वाले तोमर राजाओं ने हरा दिया था।
राजा विक्रमादित्य को सिकंदर लोधी से पराजित होना पड़ा तोमर राजाओं के पास कोहिनूर आते ही उनकी शक्तियां क्षीण होने लगी और उनके तोमर राजा विक्रमादित्य को सिकंदर लोधी से पराजित होना पड़ा, जिन्होंने विक्रमादित्य को दिल्ली में नजर बंद कर दिया लेकिन लोधी की सफलता काफी दिनों तक नहीं रही वो हुमायूं से हार गया, उस समय भी कोहिनूर उसके पास ही था।
सूरी भी एक हादसे का शिकार लोधी जीवन भर मुगलों की दया पर जीता रहा उसके बाद यह हीरा हुमायूं के पास आ गया लेकिन वो ही उसके लिए बर्बादी का सबब साबित हुआ।
हुमायूं को शेरशाह सूरी ने हरा दिया लेकिन सूरी भी एक हादसे का शिकार हो गया।
अकबर ने कभी भी कोहिनूर को अपने पास नहीं रखा
सूरी के बेटे को उसके साले जलाल खान ने मार डाला और इस तरह से कोहिनूर को सूरी के खात्मे का कारण माना जाता है।
जलाल खान को भी अपने विश्वासपात्र मंत्री से धोखा खाना पड़ा था,लेकिन मंत्री भी हादसे का शिकार हो गया और एक आंख से काना हो गया जिसके कारण उसका राज-पाट भी चला गया।
तब तक देश में अकबर का राज आ गया था लेकिन अकबर ने कभी भी कोहिनूर को अपने पास नहीं रखा और उसने काफी लंबा राज किया।
नादिर शाह ने भारत पर आक्रमण किया लेकिन कोहिनूर उसके पोते शाहजहां के सरकारी खजाने में पहुंच गया। जिसे अपने ही बेटे औरंगजेब ने आगरा के किले में कैद कर दिया था। लेकिन यहीं से औरंगजेब की भी बर्बादी शुरू हुई क्योंकि इसी के बाद ईरानी शासक नादिर शाह ने भारत पर आक्रमण किया और वो मयूर सिंहासन में जड़े कोहिनूर को लूट कर ले गया।
नादिर शाह की हत्या इसके बाद नादिर शाह की हत्या हो गई और यह अफगानिस्तान के अहमद शाह अब्दाली के हाथों में पहुंचा।
1830 में, शूजा शाह, अफगानिस्तान का तत्कालीन पदच्युत शासक किसी तरह कोहिनूर के साथ बच निकला लेकिन वो पंजाब पहुंचा और उसने महाराजा रंजीत सिंह को यह हीरा भेंट किया।
राजा रंजीत सिंह रंजीत सिंह ने स्वयं को पंजाब का महाराजा घोषित किया था।1839 में, अपनी मृत्यु शय्या पर उसने अपनी वसीयत में, कोहिनूर को पुरी, उड़ीसा प्रसिद्ध श्री जगन्नाथ, मंदिर को दान देने को लिखा था लेकिन ऐसा हो नहीं पाया और 29 मार्च 1849 को लाहौर के किले पर ब्रिटिश ध्वज फहराया और देश में रंजित सिंह का शासन समाप्त हो गया और अंग्रेजों का राज हो गया। इस दौरान एक लाहौर संधि हुई, जिसमें कहा गया था कोहिनूर नामक रत्न, जो शाह-शूजा-उल-मुल्क से महाराजा रण्जीत सिंह द्वारा लिया गया था, लाहौर के महाराजा द्वारा इंग्लैण्ड की महारानी को सौंपा जायेगा।
महिला शासकों के लिए ये हमेशा लकी रहा बस यहीं से कोहिनूर भारत से बाहर चला गया। वैसे इतिहास कार कहते हैं कि कोहिनूर पुरूष शासकों के लिए अनलकी है लेकिन महिला शासकों के लिए ये हमेशा लकी रहा है। सन् 1911 में कोहिनूर महारानी मैरी के सरताज में जड़ा गया। और आज भी उसी ताज में है। इसे लंदन स्थित ‘टावर आफ लंदन’ संग्राहलय में नुमाइश के लिये रखा गया है