इनकी इज्जत बचाने के लिए लिया मां ने धरा था ‘भ्रामरी’ अवतार
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कोलकाता टाइम्स :
देवी के नव रूपों में नवां स्थान है मां के भ्रामरी अवतार का। पुराणों के अनुसार माता का यह अवतार देव पत्नियों का सतीत्व बचाने के लिए हुआ था।
यह घटना कैसे घटी और कैसे मां ने देवियों की रक्षा की, आइए जानते हैं
एक बार अरूण नाम के दैत्य ने तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया। स्वर्ग पर अधिकार स्थापित होते ही उसकी दृष्टि पर वासना हावी हो गई। देवताओं की सुंदर पत्नियों को देखकर वह उनको अपने अधीन करने की कुचेष्टा में लग गया। जब सारी देव पत्नियों ने उसका विरोध किया, तो दैत्यराज अरूण उन्हें बंदी बनाने लगा।
भौंरों या भ्रामरों का रूप धारण कर लिया देवियों की स्थिति असहाय हो गई क्योंकि सारे देवता पहले ही युद्ध में पराजित होकर अपनी शक्तियां गंवा चुके थे। हर तरफ से स्वयं को संकट में घिरा पाकर समस्त देवियों ने अपनी शक्ति से भौंरों या भ्रामरों का रूप धारण कर लिया और अरूण के कैद करने से पहले ही उड़ चलीं।
क्यों धरती पर प्रकट हुई थीं देवी ‘योगमाया’? अपने सतीत्व की रक्षा के लिए सभी देवियों ने भ्रामरी रूप में ही मां दुर्गा की शरण ली। देव पत्नियों की ऐसी दुर्दशा देख माता की आंखें क्रोध से जलने लगीं। उन्होंने तुरंत ही 6 पैरों वाले असंख्य भ्रामरों का रूप लिया और देव शक्तियों के साथ जाकर दैत्यराज को ललकारा। देखते ही देखते भ्रामरी सेना ने संपूर्ण दैत्य वंश का नाश कर दिया। भौंरी का रूप लेने के कारण मां का यह रूप भ्रामरी अवतार के रूप में जाना गया। सीख देवी का प्रत्येक रूप हमें साहस, शौर्य, निडरता, शील, परायणता का पाठ पढ़ाता है। इसलिए प्रत्येक मनुष्य को सदैव स्त्री शक्ति का सम्मान करना चाहिए।