July 3, 2024     Select Language
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भारत के इस आखिरी रेलवे स्टेशन की फूटी ही है किस्मत, क्यूंकि …. 

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कोलकाता टाइम्स :  
ट्रेन क्या है? इसका जवाब आप सभी जानते होंगे कि ट्रेन आपके सफर को पूरा करवाने में कितना साथ देती हैं। आपको आपके मंजिल तक पहुंचाती है, आपको आपके अपनों से मिलवाती हैं, कईयों को घर की जिम्मेदारियों के चलते घर से काफी दूर भी ले जाती है ये ट्रेन। लेकिन क्या आपको पता है कि आज भी कई ऐसे स्टेशन है, जहां आज भी कुछ नहीं बदला और इनके नाम कोई न कोई रिकॉर्ड भी दर्ज है। जी हां, सिंहाबाद रेलवे स्टेशन भी उनमें से एक है, जहां आज भी सब कुछ अंग्रेजों के जमाने का है। इतना ही नहीं, ये भारत का आखिरी स्टेशन भी है। इसके बाद बांग्लादेश की सीमा शुरू हो जाती है। ये रेलवे स्टेशन पश्चिम बंगाल के मालदा जिले में स्थित हबीबपुर इलाके में स्थित है। यह काफी छोटा स्टेशन है और यहां कोई भी पैसेंजर ट्रेन नहीं रुकती। 
India's last British era singhbad railway station has history and unknown facts - FINAX NEWS
आजादी के बाद भी वीरान पड़ा था ये रेलवे स्टेशन जब 1947 में भारत और पाकिस्तान का बंटवारा हुआ, तब से ही ये रेलवे स्टेशन काफी वीरान पड़ गया। यहां लोगों की आवाजाही एकदम बंद सी हो गई थी। लेकिन 1978 में इस रूट पर मालगाड़ियों की आवाजाही (भारत से बांग्लादेश तक) शुरू की गई। इसके बाद नवंबर 2011 में पुराने समझौते में संशोधन कर इसमें नेपाल को भी शामिल कर लिया गया और फिर नेपाल जाने वाली ट्रेनें भी यहां से गुजरने लगी। 
भारत के सबसे साफ-सुथरे रेलवे स्टेशन, जो पर्यटन को भी देते हैं बढ़ावा गांधी और बोस भी यहां से गुजर चुके हैं यह स्टेशन आजादी के भी काफी पहले का है तो उस समय ये स्टेशन कोलकाता से ढाका तक जाने के लिए इस्तेमाल किया जाता था। इस रूट से कई बार महात्मा गांधी और सुभाष चंद्र बोस ढाका जा चुके हैं। काफी समय पहले यहां से दार्जिलिंग मेल जैसी ट्रेनें भी गुजरा करती थीं, लेकिन अब सिर्फ यहां से मालगाडियां ही गुजरती हैं। 
भारत का सबसे सुंदर जंगल है सुंदरबन, जंगल-प्रेमियों के लिए किसी स्वर्ग से कम नहीं आज भी नहीं बदला ये स्टेशन इस रेलवे स्टेशन की सबसे खास बात यह है कि आज भी यहां कुछ नहीं बदला है, यहां सबकुछ वैसे का वैसा है, जैसा कभी अंग्रेज छोड़कर इसे गए थे। चाहे वो यहां की सिग्रल हो या संचार या फिर कोई और उपकरण। भारत का ये एक ऐसा रेलवे स्टेशन है, जहां अब भी कार्डबोड के टिकट रखे हुए हैं, जो शायद ही अब आपको कहीं देखने को मिले। इतना ही नहीं, ट्रेन को सिग्नल देने के लिए आज भी हाथ के गियरों का इस्तेमाल किया जाता है। सबसे ज्यादा खास बात है यहां का टेलीफोन, जो बाबा आदम के जमाने का है, जैसा कि आप पुरानी फिल्मों में देखते आए हैं। 
इस स्टेशन से सिर्फ दो ही पैसेंजर ट्रेन गुजरती हैं लेकिन रुकती नहीं इस स्टेशन पर अब कोई पैसेंजर ट्रेन नहीं रुकती, जिसके चलते यहां का टिकट काउंटर बंद कर दिया गया है। लेकिन यहां केवल वही मालगाड़ी ही रूकती हैं, जिन्हें रोहनपुर के रास्ते बांग्लादेश जाना होता है। यहां रूककर ये गाडियां सिग्नल का इंतजार करती हैं। इस छोटे से स्टेशन सिर्फ दो ट्रेनें- मैत्री एक्सप्रेस और मैत्री एक्सप्रेस-1, गुजरती है। इसमें से मैत्री एक्सप्रेस साल 2008 में शुरू की गई थी, जो कोलकाता से ढाका के लिए चलती है और 375 किमी. का सफर तय करती है। वहीं, दूसरी ट्रेन मैत्री एक्सप्रेस-1 कोलकाता से बांग्लादेश के एक शहर ‘खुलना’ तक जाती है। अगर यहां के लोगों की बात की जाए तो ये आज भी इस इंतजार में बैठे है कि कभी तो वो समय आएगा, जब उस स्टेशन पर ट्रेन रुकेगी और उन्हें इन ट्रेनों में चढ़ने का मौका मिलेगा।

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