January 19, 2025     Select Language
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45 पुरुषों में अकेली महिला पोस्टमैन

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कोलकाता टाइम्स :

मैं सुमन लता कौशिक डाकिया हूं। डाकिया सुनकर आपके दिमाग में एक पुरुष की छवि जरूर उभर रही होगी। लेकिन खतों को आपके घर तक पहुंचाने की जिम्मेदारी एक महिला डाकिया भी तो निभा सकती है।

आपके संदेश महिला-पुरुष डाकिया का भेद नहीं करते। आज वर्ल्ड पोस्ट डे पर मैं आपसे अपनी कहानी शेयर कर रही हूं।

2016 से शुरू हुआ डाकिया बनने का सफर

मैं दिल्ली से हूं। एक दिन अखबार में देखा कि पोस्ट ऑफिस में भर्ती के लिए आवेदन मांगे गए हैं। मुझे नहीं पता था कि जिस पोस्ट के लिए मैं फॉर्म भर रही हूं, वह पूरी तरह फील्ड वर्क है।

मैंने अप्लाई किया और 2016 में डाकघर की नौकरी जॉइन कर ली। जॉइनिंग के बाद मेरी 15 दिन की ट्रेनिंग हुई। मैं अपने बैच में अकेली महिला डाकिया थी।

जब मुझे पोस्ट ऑफिस के लिए जॉइनिंग लेटर मिला तो मेरे पति ने इस काम के लिए मना कर दिया था। मैंने उन्हें समझाया कि इस काम में कोई बुराई नहीं है।

फिर जहां मैं सरकारी नौकरी के लिए कोचिंग ले रही थी, वहां की टीचर से बात कराई। उन्होंने भी समझाया। तब जाकर मेरा परिवार माना।

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