पंच तत्वों की यह पांच मुद्राएं रख सकता है हर रोग से दूर
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कोलकाता टाइम्स :
मुद्रा शास्त्र में देव पूजन, हवन, मंत्र जप, देवी साधना आदि में अनेक प्रकार की मुद्राओं का प्रयोग किया जाता है। मुद्राओं के प्रयोग के बिना पूजन का पूर्ण फल प्राप्त नहीं हो पाता है। मुद्राओं का प्रयोग केवल पूजन में ही नहीं अपितु रोग निवारण में भी किया जाता है। आइए जानते हैं कुछ विशिष्ट मुद्राएं और रोगों पर उनका प्रभाव-
पृथिवी मुद्रा : अनामिका तथा अंगूठे के अगले पर्व को एक साथ मिला देने से पृथिवी मुद्रा बनती है। इसके लिए किसी शांत स्वच्छ स्थान पर पद्मासन लगाकर बैठ जाएं और कम से कम 15 से 20 मिनट तक पृथिवी मुद्रा का अभ्यास करें तो इससे स्मरण शक्ति का विकास होता है एवं मानसिक शिथिलता दूर होती है। इसके निरंतर अभ्यास से जीवनी शक्ति भी बढ़ती है।
जल मुद्रा : इस मुद्रा में अंगूठे और कनिष्ठिका के अग्रभाग को मिलाकर कुछ क्षण तक अंगूठे से दबाना पड़ता है। इससे अनेक प्रकार के चर्मरोगों में आराम मिलता है। इसके द्वारा त्वचा का रूखापन दूर होता है तथा चेहरे पर चमक आती है। भोजन के पश्चात हृदय में जलन होना या खट्टी डकार आना भी इस मुद्रा से दूर हो जाती है।
वायु मुद्रा : तर्जनी अंगुली को अंगूठे के मूल भाग में लगाकर अंगूठे से तर्जनी अंगुली को दबा देने से वायु मुद्रा बनती है। इस मुद्रा के प्रयोग से गठिया और वातरोग दूर हो जाते हैं। इससे गांठों में होने वाला शोथ और उसकी वेदना शांत हो जाती है। इससे पक्षाघात, लकवा आदि भयानक रोगों में भी लाभ होता है। इस मुद्रा के प्रयोग से शरीर कर रक्त संचरण व्यवस्थित होता है।
आकाश मुद्रा : मध्यमा अंगुली को झुकाकर अंगूठे की जड़ को दबाएं और अंगूठे को मध्यमा के बीच वाले भाग पर रखें। इस मुद्रा के निरंतर अभ्यास करने से वृद्धावस्था में होने वाली बधिरता दूर होती है तथा कान का दर्द भी दूर होता है।
तेजसी मुद्रा : अनामिका अंगुली को नीचे की ओर झुकाकर उसके मध्य पर्व पर अंगूठे से दबाव दें। दमा रोग का वेग बढ़ने पर इस मुद्रा के साथ ही गरम जल के पात्र में दोनों पैरों को डाल दें तो अतिशीघ्र लाभ होता है।