यह अभिनेत्री देव आनंद के लिए आजीवन रह गयी कुंवारी
देव साहब की हिट फ़िल्म ‘काला पानी’ में उन्हें काले रंग का कोट पहनने से रोका गया। क्योंकि काले रंग के कोट में वे इतने हैंडसम लगते थे कि कहीं लड़कियां उन्हें देखकर छत से कूद न जाए।
फ़िल्म ‘विद्या’ की शूटिंग के दौरान ही उन्हें सुरैया से प्यार हुआ। फ़िल्म के गाने ‘किनारे किनारे चले जाएंगे’ में दोनों नाव पर सवार रहते हैं और नाव डूब जाती है। हीरो की तरह देव आनंद सुरैया को बचाते हैं और उसी वक्त उन्होंने सुरैया से शादी का फैसला कर लिया। देव साहब ने उन्हें फ़िल्म के सेट पर तीन हजार रुपये की एक अंगूठी देकर प्रपोज किया, लेकिन सुरैया की नानी इस शादी के खिलाफ थीं। नतीजा ये हुआ कि सुरैया सारी उम्र कुंवारी रहीं।
गुरु दत्त की पहली फ़िल्म ‘बाजी’ में देव आनंद और कल्पना कार्तिक की जोड़ी को लोगों ने खूब पसंद किया। इसके बाद दोनों ने कई फ़िल्में साथ की, जैसे ‘आंधियां, टैक्सी ड्राइवर नौ दो ग्यारह।’ इसी दौरान दोनों के बीच प्यार हुआ और फ़िल्म ‘टैक्सी ड्राइवर’ के बाद दोनों ने शादी कर ली।
फ़िल्म ‘ज्वैल थीफ’ में उन्होंने जो कैप पहनी थी, वह कोपेनहेगन से मंगवाई गई थी। सुबोध मुखर्जी की फिल्म ‘जंगली’ और नासिर हुसैन की फ़िल्म ‘तीसरी मंजिल’ के लिए पहली पसंद देव आनंद थे, लेकिन निर्माताओं के साथ मतभेद की वजह से उन्होंने दोनों फ़िल्में करने से मना कर दिया। शम्मी कपूर को मौका मिला और वे बन गए याहू स्टार।
जून, 1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने जब देश में आपातकाल लगाने का एलान किया तो देव आनंद ने फिल्म जगत के अपने कुछ दोस्तों के साथ मिलकर उसका पुरजोर विरोध किया था। बाद में जब आपातकाल खत्म हुआ और देश में चुनावों की घोषणा हुई, तो उन्होंने अपने प्रशंसकों के साथ जनता पार्टी के चुनाव प्रचार में भी हिस्सा लिया। बाद में उन्होंने नेशनल पार्टी ऑफ इंडिया के नाम से एक राजनीतिक दल की भी स्थापना की, लेकिन कुछ समय बाद उसे भंग कर दिया। उसके बाद भले ही वह राजनीतिक रूप से सक्रिय न रहे हों लेकिन समय-समय पर विभिन्न राजनीतिक मसलों पर अपनी बेबाक राय रखते रहे।
देव साहब की फ़िल्म ‘हरे राम हरे कृष्ण’ में उनकी बहन का रोल करने के लिए कोई स्थापित अभिनेत्री तैयार नहीं थी। कई नई लड़कियों के स्क्रीन टेस्ट के बाद भी उन्हें मनमुताबिक चेहरा नहीं मिल रहा था। उसी दौर में एक दिन वे एक पार्टी में जीनत अमान से मिले। वे मिस एशिया का खिताब जीत कर आई थीं। देव साहब उनसे बातचीत कर रहे थे कि जीनत ने उन्हें हैंडबैग से सिगरेट निकालकर दी। उनकी यही अदा देव साहब को भा गई और उन्होंने जीनत को अपनी फ़िल्म के लिए साइन कर लिया।
सभी जानते हैं कि मुहम्मद रफी ने देव साहब की बहुत सारी फ़िल्मों में उनके सदाबहार गीतों को अपनी आवाज दी है। यह जानकारी बहुत कम लोगों को होगी कि देवानंद ने भी रफी के लिए गाना गया है। इन दोनों ने वर्ष 1966 में बनी फ़िल्म ‘प्यार मोहब्बत’ में साथ में गाया था। देव आनंद ने एक बार 31 जुलाई को रफी की पुण्यतिथि पर आयोजित समारोह में लोगों से इस राज को साझा किया था। उन्होंने बताया था, ‘मैंने कभी गाना नहीं गया, लेकिन रफी के गाने ‘प्यार मोहब्बत के सिवा ये ज़िंदगी क्या ज़िंदगी ..’ में जो हुर्रे ..हुर्रे है, वह मेरी आवाज है। मैंने बस उतना ही गाया।’
भारतीय सिनेमा में उल्लेखनीय योगदान देने वाले देवानंद वर्ष 2001 में प्रतिष्ठित पद्म भूषण सम्मान से विभूषित किए गए और 2002 में उन्हें दादा साहब फाल्के पुरस्कार प्रदान किया गया। देव साहब का लंदन में दिल का दौरा पड़ने से निधन हुआ था।