इस विलेन के दीवाने थे ‘गब्बर सिंह’
‘शोले’ में गब्बर सिंह के बाद उन्होंने ‘मुकद्दर का सिकंदर’ और ‘दादा’ फ़िल्म में गजब की भूमिका निभाई। वे एक संपूर्ण अभिनेता थे, क्योंकि अपने अभिनय जीवन में उन्होंने चरित्र, हास्य और खल भूमिकाओं को जीवंत किया, जिस कारण उन्हें कई बार फ़िल्मफेयर अवार्ड सहित कई अन्य अवार्ड भी मिले। जब अमजद ख़ान के पास फ़िल्में कम हो गईं तो अपने को व्यस्त रखने के लिए उन्होंने फ़िल्म निर्माण का काम शुरू किया। पहली फ़िल्म ‘चोर पुलिस’ बनाई, लेकिन वह सेंसर में ऐसी फंसी की जब निकली, तो टुकड़े-टुकड़े होकर और वह कुछ विशेष न कर सकी। दूसरी फ़िल्म ‘अमीर आदमी गरीब आदमी’ थी, जो कामगारों के शोषण पर आधारित थी। तीसरी फ़िल्म उन्होंने अमिताभ बच्चन के साथ बनानी चाही, जिसका नाम था ‘लंबाई-चौड़ाई’ लेकिन यह फ़िल्म सेट पर पहुंच नहीं पायी।
यह बात कम लोगों को पता है कि अमजद ख़ान उस कल्पना अय्यर को प्यार करते थे, जिसने तमाम फ़िल्मों में बेबस-बेगुनाह नायिकाओं पर बेपनाह जुल्म ढाए। भारी डील-डौल वाले गोरे-चिट्टे अमजद और दुबली-पतली इकहरे बदन की सांवली कल्पना अय्यर में देखने-सुनने में खासा अंतर था, लेकिन दोनों में एक गुण समान था। दरअसल, दोनों रुपहले पर्दे पर भोले-भाले निर्दोष पात्रों पर बड़े जुल्म ढाते थे। जिस तरह अमजद या तो खलनायक के रोल में फ़िल्मों में आए या फिर कैरेक्टर रोल में, उसी तरह कल्पना भी कभी हीरोइन तो नहीं बनीं, लेकिन खलनायिका का रोल उन्होंने भी खूब किया। फ़िल्मों में डांस आइटम भी किए। कुल मिलाकर कल्पना ने भी ढेर सारी फ़िल्में कीं।
अमजद और कल्पना की पहली मुलाकात एक स्टूडियो में हुई थी, जहां दोनों अलग-अलग फ़िल्म की शूटिंग कर रहे थे। फिर ये परिचय प्यार में बदला। कल्पना जानती थीं कि अमजद शादीशुदा हैं। उनकी पत्नी हैं और उनके तीन बच्चे भी हैं। यदि कल्पना अमजद की बीवी बनने के लिए जिद करतीं, तो यह शादी हो भी जाती। लेकिन, दोनों ने जानबूझकर ऐसा नहीं किया, क्योंकि अगर दोनों शादी करते तो अमजद के भरे-पूरे परिवार में तूफान आ जाता। जब तक अमजद ख़ान जीवित रहे, वे कल्पना के दोस्त और गाइड बने रहे। कहते हैं कि अमजद चाय के बेहद शौकीन थे। दिन भर में पच्चीस-तीस कप, वह भी चीनी के साथ। कल्पना ने उनकी इस आदत पर कंट्रोल करने की कोशिश की, लेकिन जब भी वे कहतीं, अमजद हंसी में बात उड़ा देते। जब अमजद का इंतकाल हुआ, तो कल्पना उनके घर गई। कल्पना के कई शुभचिंतकों ने उनसे वहां न जाने की सलाह भी दी कि पता नहीं अमजद के परिवार वालों का क्या रवैया हो? कहीं वे उन्हें भीतर आने ही न दें, लेकिन कल्पना ने यह सलाह नहीं मानी। कल्पना जानती थीं कि वे अमजद की ब्याहता नहीं हैं, लेकिन वे वहां शोक मनाने गईं। अपने उस दोस्त को आखिरी सलाम करने गईं, जिसके साथ उनका बेनाम रिश्ता था।
बहरहाल, डिंपल कपाड़िया और राखी अभिनीत फ़िल्म ‘रुदाली’ अमजद ख़ान की आखिरी फ़िल्म थी। इस फ़िल्म में उन्होंने एक मरने की हालात में पहुंचे एक ठाकुर की भूमिका निभाई थी, जिसकी जान निकलते निकलते नहीं निकलती है। ठाकुर यह जानता है कि उसकी मौत पर उसके परिवार के लोग नहीं रोयेंगे। इसलिए वह मातम मनाने और रोने के लिए रुपये लेकर रोने वाली रुदाली बुलाता है। यह अलग बात है कि रुदाली के ठाकुर की मौत पर रोने वाला कोई नहीं था, लेकिन जब अमजद ख़ान की मौत हुई, तो मात्र इंडस्ट्री ही नहीं, समूचा संसार रोया था, क्योंकि उनकी चर्चित फ़िल्म शोले देश ही नहीं, विदेश में भी सराही गई थी। जिस तरह आज हॉलीवुड की फ़िल्मों की नकल हिंदी फ़िल्मों में हो रही है, शोले के इस गब्बर की नकल तब हॉलीवुड की कई बड़ी फ़िल्मों में देखी गई।