July 1, 2024     Select Language
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कहीं आपके राशि में मंगल वक्री तो नहीं चल रहा हो, जाने क्या होगा ?

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कोलकाता टाइम्स : 
र्तमान गोचर में मंगल वृषभ राशि में वक्री चल रहा है। मंगल के वक्री होने की स्थिति में शारीरिक एवं आंतरिक शक्ति दोनों कमजोर पड़ जाती हैं। जातक का स्वभाव क्रोधी और चिड़चिड़ा हो जाता है। उसकी वाणी दूषित हो जाती है और वह उटपटांग बातें करने लगता है। और आलस्य उस पर हावी हो जाता है। एक तरह से मंगल वक्री होने पर जातक निष्कि्रय हो जाता है। कुंडली के अलग-अलग भाव में मंगल के वक्री होने के अलग-अलग प्रभाव मिलते हैं। इनमें शुभ और अशुभ दोनों तरह के प्रभाव होते हैं। यहां हम केवल बुरे प्रभावाों की बात करेंगे।
प्रथम भाव : मंगल यदि प्रथम भाव में वक्री हो तो व्यक्ति झूठ बोलने लगता है। अपनों से ही कई बातें छुपाने लगता है। घमंडी, भावुक और पूर्वाग्रही बन जाता है। जातक हिंसक, क्रूर और मन में बैर की भावना रखने वाला हो जाता है।
द्वितीय भाव : दूसरे भाव में मंगल वक्री हो तो जातक कृतघ्न हो जाता है। सुंदर वस्तुओं और स्ति्रयों के प्रति उसके विचार गंदे हो जाते हैं। ऐसा जातक भौतिक वस्तुओं के पीछे दौड़ते-दौड़ते गलत कार्य करने लगता है। मानवीय गुणों की कमी हो जाती है।
तृतीय भाव : जातक के तीसरे भाव में मंगल वक्री हो तो अपने ही कुटुंबजनों का विरोध झेलना पड़ता है। ऐसा व्यक्ति अनुशासनहीन हो जाता है। ऐसा व्यक्ति शिक्षा, धर्म, सामाजिक सभी कार्यो में विघ्न डालने का प्रयास करता है।
चतुर्थ भाव : जातक क्रोधी, हठी और क्रूर हो जाता है। इनका पारिवारिक वातावरण दूषित होता है। किसी की सुनता नहीं, अपनी मनमर्जी करता है। जातक अपने पिता के प्रति विद्रोह करता है और माता से भी अनुकूल व्यवहार नहीं करता है।
पंचम भाव : पंचम भाव में वक्री मंगल प्रेम संबंध, संतान सुख को प्रभावित करता है। जातक प्रेम संबंधों में और दांपत्य जीवन में अप्राकृतिक कृत्य करता है। अपने साथी को मात्र उपभोग की वस्तु समझता है। ऐसा व्यक्ति दूसरों की भावनाओें की कद्र नहीं करता।
छठा भाव : यहां वक्री मंगल व्यक्ति के स्वास्थ्य और कार्यशैली को प्रभावित करता है। व्यक्ति रोगी होने पर भी डाक्टर को नहीं दिखाता और मन से दवाई लेता रहता है जिससे रोग और बढ़ जाता है। शुभचिंतकों के प्रति उदासीन होता है।
सातवां भाव : व्यक्ति का वैवाहिक जीवन प्रभावित होता है। जीवनसाथी के प्रति उदासीन होता है। साझेदारी में किए गए कार्य असफल होते हैं। व्यक्ति ईमानदार नहीं रहता और अपने पार्टनर के प्रति दुराव-छिपाव करता रहता है।
आठवां भाव : आठवें भाव में मंगल वक्री हो तो जातक के जीवन में दुर्घटनाएं घटित होती रहती हैं। अपने तर्क-कुतर्क से मित्रता का अंत कर बैठता है। स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाता है। बच्चों के साथ धोखाधड़ी करता है और उन पर बुरी नजर रखता है।
नवां भाव : नवम वक्री मंगल वाला जातक ढोंगी होता है। अधार्मिक होते हुए भी धार्मिक होने का दिखावा करता है। शिक्षा के क्षेत्र में असफल होता है। व्यक्ति दुराग्रही होता है। किसी के प्रति बुरी बात मन में पालकर बैठ जाते हैं।
दशम भाव : दशम भाव में वक्री मंगल हो तो जातक आजीविका के साधनों के लिए भटकता रहता है। नौकरी और कार्य में बार-बार बदलाव भी होते हैं। कोई इन पर विश्वास नहीं करता। यदि बड़ा पद मिल जाए तो उसका दुरुपयोग शुरू कर देते है।
एकादश भाव : एकादश का वक्री मंगल होने पर जातक अपने ने निम्नवर्ग के लोगों के साथ उठना-बैठना शुरू कर देता है। इनके नैतिक मूल्य खराब होते हैं। वाणी में खराबी आ जाती है और निम्नस्तरीय भाषा का प्रयोग करने लगते हैं।
द्वादश भाव : द्वादश का मंगल वक्री हो तो जातक स्वास्थ्य के प्रति लापरवाह होता है। खाने-पीने में परहेज नहीं रखता और शरीर खराब हो जाता है। वक्री मंगल के कारण व्यक्ति जीवन की चुनौतियों का सामना करने से घबराते हैं। ज्ञान का अभाव रहता है।

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