पानी की कहानी सुन घूम जायेगा सिर
कोलकाता टाइम्स :
खगोलविद आमतौर पर अंतरिक्ष में अलग अलग अणुओं के रूप में बनने से लेकर ग्रहों की सतहों तक पहुंचने तक की यात्रा को ‘पानी की यात्रा’ के रूप में संदर्भित करते हैं. ये यात्रा तारों के बीच में पगडंडी की तरह हाइड्रोजन और ऑक्सीजन गैस के साथ शुरू होती है और ग्रहों पर महासागरों और बर्फ की चोटियों के साथ समाप्त होती है, इसमें बर्फीले चंद्रमा गैस भंडारों और बर्फीले धूमकेतुओं और क्षुद्रग्रहों की परिक्रमा करते हैं जो सितारों की परिक्रमा करते हैं.
खगोलशास्त्री जॉन टोबिन ने अपनी लेटेस्ट रिसर्च के दौरान इस विषय पर फोकस किया कि धरती पर पानी कैसे आया और पृथ्वी समेत अन्य ग्रहों का निर्माण कैसे हुआ.
तारों और ग्रहों का निर्माण आपस में जुड़ा हुआ है. तथाकथित अंतरिक्ष की शून्यता या इंटरस्टेलर माध्यम, हकीकत में बड़ी मात्रा में गैसीय हाइड्रोजन, अन्य गैसों की थोड़ी मात्रा और धूल के कण होते हैं. गुरुत्वाकर्षण के कारण, अंतरतारकीय माध्यम के कुछ हिस्से अधिक सघन हो जाते हैं क्योंकि कण एक दूसरे को आकर्षित करते हैं और बादलों का निर्माण करते हैं. जैसे जैसे इन बादलों का घनत्व बढ़ता है, अणु अधिक बार टकराने लगते हैं और बड़े अणुओं का निर्माण करते हैं, जिसमें पानी भी शामिल है जो धूल के दानों पर बनता है और धूल को बर्फ में ढक देता है.