सुख-संपत्ति स्वयं चल कर आती है ऐसे लोगों के घर
पुराणों में कहा गया है की अपने लक्ष्य को पाने के लिए जो व्यक्ति लग्न और ईमानदारी से मेहनत करता है। देवी महालक्ष्मी अपना आशीर्वाद सदैव उस पर बनाई रखती हैं। भगवान को सदा अपने अंग-संग समझें और उनकी कृपा के लिए सदैव उन्हें धन्यवाद देते रहें।
करुणा को अपनाओ, असत्य का आश्रय न लो, सत्य-पथ को अपनाओ, पवित्रता से रहो, आहार-विहार को शुद्ध करो, सभी प्राणियों की सेवा करो, किसी भी प्राणी के साथ मन, वाणी और शरीर से किसी भी प्रकार का वैर न रखो, सबके साथ मैत्रीपूर्ण व्यवहार करो, द्वेष भाव को त्याग कर सबके कल्याण में रमे रहो, माता-पिता गुरुजनों की सेवा करो और काम को त्यागकर सबके कल्याण में रमे रहो, क्रोध, लोभ तथा मोह को पास मत फटकने दो।
रामायण के बालकांड में सुख-संपत्ति पाने के लिए मंत्र दिया गया है-
‘जिमि सरिता सागर महुं जाही।
जद्यपि ताहि कामना नाहीं।।
तिमि सुख संपति बिनहिं बोलाएं।
धरमसील पहिं जाहिं सुभाएं।।’
अर्थात: नदियां बहती हुई सागर की तरफ जाती हैं, चाहे उनके मानसपटल पर उस ओर जाने की कामना हो या न हो वैसे ही सुख-संपत्ति भी बिना किसी चाह के धर्मशील और विचार योग्य लोगों के पास पंहुच ही जाती है।