जानते हैं क्या होता है गुफा रोग, यहां जानिए इसके बारे में?
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कोलकाता टाइम्स :
अपने सुना होगा थाईलैंड की गुफा में 12 बच्चों के अपने कोच के साथ फंसे होने की खबर। कुछ बहादुर बच्चों और उनके कोच को अंधेरी थम लुआंग गुफा में बेहत खतरनाक और मुश्किल परिस्थितियों से लड़ना पड़ा था । ये गुफा उत्तरी थाईलैंड के जंगल में पहाड़ी क्षेत्र में स्थित है। हालाँकि उन्हें सुरक्षित बाहर निकाला गया। आपको बता दें कि इन सभी पर अब ‘गुफा रोग’ से ग्रस्त होने का खतरा मंडरा रहा है। तो चलिए जानते हैं कि आखिर ये गुफा रोग क्या है और इसका पता कैसे चलता है और इसका ईलाज क्या है।
क्या है गुफा रोग इसे स्पेलिओनोसिस भी कहा जाता है। ये रोग असल में उन लोगों को अपना शिकार बनाता है जिनका इम्यून सिस्टम कमजोर होता है। इसलिए ऐसे लोगों को गुफाओं में जाने से बचना चाहिए।
इस रोग का पता लगाना थोड़ा मुश्किल होता है और इसके कई कारण हो सकते हैं। प्रमुख तौर पर ये रोग किसी व्यक्ति की सामान्य सेहत पर निर्भर करता है और वह व्यक्ति फंगस के कितना संपर्क में आया है। स्वस्थ दिखने वाले व्यक्ति में इस बीमारी के कोई लक्षण या संकेत नज़र नहीं आते हैं। स्वस्थ लोगों के हिस्टोप्लाज़मोसिस के संपर्क में आने की वजह से बीमार पड़ने की संभावना कम होती है।
हालांकि, जो लोग इस बीमारी के संपर्क में आ चुके हैं उनमें फ्लू से जुड़े लक्षण जैसे खांसी, बुखार, अत्यधिक थकान होना, सिरदर्द होना, सर्दी लगना, सीने और बदन में दर्द आदि नज़र आते हैं। फंगस के आसपास की जगह पर सांस लेने पर व्यक्ति में 3 से 17 दिन के भीतर इस तरह के लक्षण दिखाई देने लगते हैं। अगर किसी व्यक्ति का इम्यून सिस्टम कमजोर है या किसी का एचआईवी अनियंत्रित है या किसी का कैंसर का ईलाज चल रहा है तो उसमें इस तरह के लक्षण सबसे ज्यादा नज़र आते हैं जैसे कि कंफ्यूज़ रहना आदि। ऐसा तब होता है जब ये बीमारी फेफड़ों से होकर शरीर के अन्य हिस्सों में फैलती है। यहां तक कि दिमाग में भी। गंभीर संक्रमण होने पर मृत्यु तक हो सकती है।
हिस्टोप्लासमोसिस क्या है ये फेफडों का एक रोग है जो कि फंगस से होने वाले संक्रमण से फैलता है। इस तरह का फंगस उन जगहों पर ज्यादा होता है जहां पर चमगादड़ और पक्षी रहते हैं, जैसे कि गुफाएं। इसी वजह से इसे गुफा रोग भी कहा जाता है। इस कवक के वायुमंडलीय बीज जब सांस लेने के माध्यम से शरीर के अंदर जाते हैं तो ये संक्रमण पैदा होता है।
जिन लोगों को इम्यून सिस्टम कमजोर होता है वो इस संक्रमण की चपेट में आ सकते हैं। इस संक्रमण के लक्षण निमोनिया के लक्षणों से काफी मिलते-जुलते हैं। गुफा रोग का ईलाज और बचाव सामान्य सेहत रखने वाले लोगों में गुफा रोग को कुछ ही दिनों में ठीक किया जा सकता है और अच्छी बात ये है कि इसके लिए कोई दवा नहीं लेनी पड़ती बल्कि ये खुद ही ठीक हो जाता है। इसके अलावा कुछ एंटीफंगल दवाएं भी हैं जो इस संक्रमण से लड़ने के लिए ली जा सकती हैं। कमजोर इम्यून सिस्टम वालों में बहुत ज्यादा गंभीर लक्षण दिखने पर ही दवा का सेवन करना चाहिए। इस बीमारी का ईलाज तीन महीने से एक साल तक चल सकता है। गुफा में जाने पर स्पोर्स में सांस लेने से बचा नहीं जा सकता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि गुफा में लगभग हर जगह फंगस होता है।
इससे बचने का सबसे सही तरीका यही है कि आप ऐसे किसी क्षेत्र में जाने पर उन जगहों पर जाने से बचें जहां चमगादड़ या पक्षी बैठे हों। किसी भी गुफा में जाने से पहले वहां के स्थानीय लोगों से दिशा-निर्देश और सावधानियों के बारे में पता कर लें और वहां के सार्वजनिक सेहत विभाग में भी बात करें। स्थानीय लोग आपको उन गुफाओं के बारे में बता सकते हैं जहां पर हिस्टोप्लाज़मोसिस का खतरा ज्यादा होता है। आप विशेष डस्ट मिस्ट मास्क भी पहन सकते हैं। इन्हें कुछ इस तरह से डिजाइन किया जाता है कि सांस लेने पर कम से कम स्पोर्स शरीर के अंदर जा पाते हैं।
गुफा रोग का पता लगाना इस संक्रमण के संकेत और लक्षण विशिष्ट नहीं है। लैब टेस्ट से इस बीमारी का पता चल सकता है। इसके लिए निम्न टेस्ट किए जा सकते हैं – यूरिन टेस्ट में हिस्टोप्लाज़मा का पता लगाना। रक्त परीक्षण जो हिस्टोप्लाज्मा से एंटीबॉडी की प्रतिक्रिया को माप सकता है। संक्रमित टिश्यू सैंपल का माइक्रोस्कोपिक परीक्षण शरीर के तरल पदार्थ या ऊतकों के कल्चर्स ताकि कवक की पहचान की जा सके।
हिस्टोप्लाज़मोसिस का पता लगाने के लिए छाती का एक्सरे भी करवाया जा सकता है। जिस हिस्से में संक्रमण फैला हो सीटी स्कैन से उसका पता लगाया जा सकता है। कमजोर इम्यून सिस्टम वाले लोगों को गुफा में नहीं जाना चाहिए क्योंकि इससे उनकी जान को खतरा रहता है।