कोलकाता टाइम्स :
मिस्टर एंड मिसेज 55 (1955), सी.आई.डी. (1956), और कागज के फूल (1959) जैसी फिल्मों में जॉनी वॉकर का रोल हीरो से कम नहीं हैं. तय है कि एक्टर के रूप में शूटिंग के लिए उन्हें तमाम जगहों पर जाना होता था. फिल्मों की शूटिंग सिर्फ मुंबई में नहीं होती थी. परंतु जॉनी वॉकर को अपनी जिंदगी में चेन्नई कभी रास नहीं आया. उन दिनों चेन्नई का नाम मद्रास था. असल में उनकी जिंदगी में ऐसे अहम मौके आए, जब उन्होंने इस महानगर में कदम रखा और उन्हें किसी अपने के मौत की खबर मिली.
जब जॉनी वॉकर हिंदी फिल्मों में जम गए थे, तो उन्हें साउथ की फिल्म इंडस्ट्री से भी ऑफर आने लगे. उन्होंने भी हां कहा. लेकिन जब वह फिल्म की शूटिंग के लिए मद्रास पहुंचे तो हवाई अड्डे पर उतरते ही पता चला कि उनके भतीजे की मृत्यु हो गई. जॉनी वॉकर का 15 लोगों का भरा-पूरा संयुक्त परिवार था. वह भतीजे की खबर सुनते ही वापस लौट पड़े. इसके बाद कुछ दिन गुजरे और जॉनी वॉकर को मद्रास से दूसरी बार बुलावा आया. वह शूटिंग के लिए गए तो खबर आई कि उनके पिताजी नहीं रहे. जॉनी वॉकर शूटिंग छोड़कर लौटे. तीसरी बार तो वो खबर मिली की जॉनी वाकर को गहरा सदमा लगा. शूटिंग के लिए मद्रास आने पर उन्होंने होटल रूम में बैग भी नहीं रखा था कि फोन की घंटी बज गई. फोन उठाते ही खबर आई कि उनकी जिंदगी बनाने वाले और पक्के दोस्त गुरु दत्त का देहांत हो गया है.
इस हादसे बाद जॉनी वॉकर ने मद्रास न जाने की कसम खा ली. उन्होंने ऐसी फिल्मों में काम करने से ही इंकार कर दिया, जिनकी शूटिंग के लिए उन्हें मद्रास जाना पड़े.
चौदह साल बाद उन्हें कमल हासन ने अपी फिल्म के लिए मनाया. फिल्म थी, चाची 420. जॉनी वॉकर प्लेन में बैठते हुए डर रहे थे कि इस बार भी कहीं कोई बुरी खबर न आए. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. फिल्म में जॉनी वॉकर एक शराबी पेंटर के रोल में थे. शूटिंग हो गई. कोई धक्का पहुंचाने वाली खबर नहीं आई. लेकिन चाची 420 वह आखिरी फिल्म साबित हुई, जिसमें जॉनी वॉकर नजर आए थे.