कोलकाता टाइम्स :
कड़क सफेद कुर्ते और शायराना अंदाज में अपनी बात रखने वाले आजम खान का दामन दागदार हो चुका है. उनके खिलाफ 80 से अधिक केस अदालतों में चल रहे हैं जिनमें से हाल ही में बेटे अब्दुल्ला आजम के जाली बर्थ सर्टिफिकेट मामले में सजा काट रहे हैं. हालांकि जिस विषय की हम चर्चा करने जा रहे हैं वो उनके जौहर ट्रस्ट से जुड़ा हुआ है. जौहर ट्रस्ट के जरिए क्या कुछ उन्होंने किया उससे पहले उनके एक बयान को जानना और समझना जरूरी है. आजम खान कहा करते हैं कि उनकी खता सिर्फ इतनी सी है कि वो गरीब, मजलूम समाज के बेहतर एजुकेशन के बारे में सोचा करते थे. यह बात अलग है कि कुछ लोगों को उनकी सोच पसंद नहीं आई. इन सबके बीच अहम सवाल यह है कि क्या कोई शख्स रसूख का इस्तेमाल कर सरकारी जमीनों की बंदरबाट करेगा. क्या किसी शख्स को सत्ता में बने रहने के दौरान मनमाना फैसला लेने का अधिकार मिल जाता है. इसे समझने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार के एक फैसले पर पहले नजर डालना जरूरी है.
31 अक्टूबर को यूपी कैबिनेट ने मुर्तजा हायर सेकेंड्री स्कूल दी गई जमीन को वापस लेने का फैसला किया है. आप भी सोच सकते हैं कि भला काम तो शिक्षा के प्रचार- प्रसार का था ऐसे में जमीन क्यों वापस ली गई. दरअसल मामला यह है कि जिस जमीन पर शिक्षा विभाग का दफ्तर है उसे महज 100 रुपए में 30 साल के लिए लीज पर दिया गया था. अब लीज पर देने का फैसला कब लिया गया वो भी दिलचस्प है, आज से 16 साल पहले यानी 2007 सूबे में मुलायम सिंह यादव की सरकार थी और आजम खान सरकार में मंत्री थे. आजम खान ने अपने रसूख का फायदा उठाया और सरकारी जमीन को औने पौने दाम पर अपने ट्रस्ट के नाम पर लीज करा ली. इस मामले की जांच तब शुरू हुई जब सूबे में योगी आदित्यनाथ की सरकार आई.