अब चंदा लेने से पहले सैकड़ों बार सोचना होगा, सुप्रीम कोर्ट ने जो कह दिया यह …
1. कोर्ट ने माना कि इलेक्ट्रोरल बॉन्ड स्कीम वोटर के जानने के अधिकार का हनन करती है. बेंच ने माना कि ये स्कीम वोटरों के आर्टिकल 19 (1) A का उल्लंघन करती है.
2. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि इस स्कीम के जरिए ब्लैक मनी पर लगाम कसने की दलील देकर वोटरों के दलों की फंडिंग के बारे में जानने के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता.
3. इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता कि चंदा रिश्वत का जरिया भी बन सकता है.
‘सरकार का फैसला मनमाना’
4. कोर्ट ने कॉरपोरेट कंपनी पर इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए चंदा देने की निर्धारित सीमा को हटाने के सरकार के फैसले को मनमाना और गलत करार दिया. कोर्ट ने फैसला दिया कि इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम पर तुरंत रोक लगे.
5. कोर्ट ने SBI को निर्देश दिया है कि वह खुलासा करे कि किस राजनीतिक पार्टी को इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए कुल कितना चंदा दिया गया है. SBI ये जानकारी EC को देगा. चुनाव आयोग 31 मार्च तक पूरी जानकारी वेबसाइट पर डालेगा. अभी तक जिन राजनीतिक दलों ने बॉन्ड को कैश नहीं कराया, वे बैंक को वापस देंगे.
इससे पहले राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता लाने के लिए पार्टियों को दिए जाने वाले दान के विकल्प के रूप में इस योजना को पेश किया गया था. हालांकि कांग्रेस नेता जया ठाकुर, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी और NGO एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गई. सुनवाई पूरी कर चीफ जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने पिछले साल दो नवंबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था. इस संविधान पीठ में जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बी. आर. गवई, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा शामिल हैं.