नेहरू की बाराती आये दिल्ली की दिल पर सवार होकर
घंटाघर इससे भी पहले 1870 में बन गया था. 1960-62 तक ट्राम चलती रही, उसके बाद यह इतिहास के पन्नों में सिमटकर रह गई.
तब यह ट्राम चांदनी चौक, खारी बावली, फतेहपुरी, सदर बाजार, अजमेरी गेट, पहाड़गंज, जामा मस्जिद, चावड़ी बाजार, लाल कुआं, कटरा बादियान, फतेहपुरी और सिविल लाइंस को जोड़ती थी. तब कई खेत रेलवे स्टेशन में तब्दील हो गए थे.
असंभव तो कुछ नहीं है लेकिन लोगों का तर्क है कि ट्राम चलाना अब आसान नहीं है. इसके लिए चांदनी चौक में काफी कुछ बदलाव करना पड़ेगा. सड़क के बीच में ट्रांसफॉर्मर आ गए हैं. ऐसे कई व्यवधान हैं जिससे ट्राम का प्रस्ताव अभी चुनावी वादा ही ज्यादा लगता है लेकिन भाजपा प्रत्याशी के दावे से चर्चा जोर पकड़ने लगी है. यहां जाम की समस्या से हर कोई दो चार होता है. प्रवीन खंडेलवाल का कहना है कि इसका प्रस्ताव बना था. उसकी स्टडी कर आगे बढ़ा दिया जाएगा. वैसे अभी चांदनी चौक इलाके में दिल्ली मेट्रो का एक स्टेशन है, जहां से बड़ी संख्या में लोग आते जाते हैं.