इस जानवर के गायब होते ही इंसानों की जिंदगी खतरे में
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कोलकाता टाइम्स :
मरे हुए मवेशियों के ऊपर मंडराते हुए गिद्ध देखकर किसी को भी घिन आ सकती है लेकिन यही गिद्ध हमारे पर्यावरण को साफ भी कर रहे हैं. आलम यह है कि गिद्धों की घटती तादाद या विलुप्त होने ने लाखों लोगों की जान भी ले ली है. गिद्धों की मौतों के पीछे सबसे बड़े कारणों में बीमार गायों के इलाज के लिए इस्तेमाल की जाने वाली कुछ दवाएं हैं.
आंकड़ों के अनुसार मवेशियों के लिए दर्द निवारक के तौर पर दी जाने वाली सस्ती डाइक्लोफेनाक दवा ने गिद्धों की जान लेने में सबसे ज्यादा अहम भूमिका निभाई है. बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार 1990 के दशक के मध्य आते-आते 5 करोड़ की आबादी वाले गिद्धों की संख्या डाइक्लोफेनाक नाम की दवा की वजह से तकरीबन शून्य पर आ गई. इसका इंसानी आबादी पर जो असर हुआ, वो खौफनाक है.
अमेरिकन इकोनॉमिक एसोसिएशन जर्नल में प्रकाशित अध्ययन में कहा गया है, ”अनजाने में गिद्धों की मौत की वजह से घातक बैक्टीरिया और संक्रमण फैला. इससे 5 वर्षों में करीब 5 लाख लोगों की मौत हो गई.”
हमारे ईकोसिस्टम में हर जीव का अपना अलग योगदान है और गिद्धों को लेकर भी ऐसा ही है. अध्ययन में शामिल शिकागो विश्वविद्यालय के हैरिस स्कूल ऑफ पब्लिक पॉलिसी में सहायक प्रोफेसर इयाल फ्रैंक कहते हैं, “ऐसा माना जाता है कि गिद्ध प्रकृति को स्वच्छ रखते हैं, वे हमारे पर्यावरण से बैक्टीरिया और बीमारी से मारे गए जानवरों को हटाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. उनके बिना बीमारी फैल सकती है.” जाहिर है जब गिद्ध विलुप्त हुए तो पर्यावरण की सफाई करने का जिम्मा उठाने वाले जीव ना रहने से संक्रमण फैला.
शोधकर्ताओं का अनुमान है कि साल 2000 और 2005 के बीच, गिद्धों की आबादी घटने की वजह से हर साल करीब 1 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हुई है. ये मौतें ऐसी बीमारीयों और बैक्टीरिया के फैलने की वजह से हुईं, जिन्हें आमतौर पर गिद्ध पर्यावरण से दूर कर देते थे. यह बताता है कि किसी प्रजाति का नष्ट होना मनुष्यों पर कितना बड़ा असर डालता है.
गिद्धों के रहने से किसानों का काम आसान होता था. विशेषतौर पर मवेशियों के शवों को हटाने के लिए किसान गिद्ध पर ही निर्भर थे. लेकिन गिद्धों के मरने से किसान को कई समस्याएं हुई हैं.