जीवन बदल सकता हैं चंद्रकांत मणि की बूंद
कोलकाता टाइम्स
भारत के प्रसिद्ध तीर्थ स्थलों में झारखंड के देवघर का बैद्यनाथ धाम अत्यंत महत्वपूर्ण है। द्वादश ज्योतिर्लिगों में से एक बैद्यनाथ मंदिर स्थापत्य कला की दृष्टि से देश के प्राचीनतम मंदिरों में से एक है। यहां सावन में गंगाजल अर्पण का विशेष महत्व है। धर्माचार्यो के मुताबिक शिव पुराण और बैद्यनाथ महात्म्य में वर्णित तथ्यों में कहा गया है कि बैद्यनाथ ज्योतिर्लिग को गंगाजल और विल्वपत्र (बेल के पत्ते) अर्पण करने से मनुष्य के सभी पाप धुल जाते हैं।
बैद्यनाथ धाम का मंदिर ठोस पत्थरों से निर्मित है। मंदिर के मध्य प्रांगण में बना शिव का भव्य और विशाल मंदिर मनमोहक है। यह मंदिर कब बना और किसने बनवाया, यह गंभीर शोध का विषय है। मंदिर के मध्य प्रांगण में शिव के 72 फीट ऊंचे मंदिर के अलावा उसी प्रांगण में अन्य 22 मंदिर हैं। मंदिर प्रांगण में एक घंटा, एक चंद्रकूप और एक विशाल सिंह दरवाजा बना हुआ है।
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इस मंदिर की विशेषता है कि यहां शिवलिंग पर मंदिर के ऊपर लगे चंद्रकांत मणि से बराबर बूंद-बूंद जल टपकता रहता है। मान्यता के अनुसार, चंद्रकांत मणि रावण ने धन देवता कुबेर से हासिल कर यहां लगवाया था। चंद्रकांत मणि अष्टदल कमल की आकृति के बीच में लगा हुआ है। पुजारियों के मुताबिक, इस मंदिर में रात को होने वाली श्रृंगार पूजा में शिवलिंग पर जो चंदन का लेप किया जाता है, उसके ऊपर रातभर चंद्रकांत मणि से बूंदें टपकती रहती हैं। यही कारण है कि सुबह इस चंदन को लेने के लिए भक्तों की भारी भीड़ लगती है। लोगों का कहना है कि यह घाम चंदन अमृत के समान होता है। इससे सभी रोग और दुख दूर हो जाते हैं।
यहां के पंडितों का कहना है कि इस बात का पता वर्ष 1962 में उस समय चला जब सरकार की ओर से इस मंदिर में एक और दरवाजा बनाने के लिए खुदाई की जा रही थी। चंद्रकांत मणि मिलने के बाद दरवाजा बनाने का कार्य रोक दिया गया था। पंडितों ने बताया कि एक और चंद्रकांत मणि देवी लक्ष्मी के मंदिर में है।