कोलकाता टाइम्स
कुदरत ने अपने दिलकश फलक पर नीले हरे पनीले ब्रश से बहुत कुछ आकर्षक रचा है। खासतौर पर हर मौसम के मेज़बान हिमाचल प्रदेश के आंगन में बिछे कैनवास पर तो पर्यटकों के लिए पूरे बरस घुम्मकड़ी के लिए कितने ही गंतव्य हैं। हिमाचल की गोद में उगी अनेक प्राकृतिक व अप्राकृतिक झीलों का नीला हरा पानी पर्यटकों को कुछ अलग आनन्द देने के लिए बुलाता है। इन जल स्त्रोतों के लुभावने सानिध्य में असंख्य जलखेल प्रतियोगी व पर्यटक हर वर्ष आते हैं और जलक्रीड़ाओं का सक्रिय हिस्सा हो जाते हैं। इस बरस बरसे मेघों ने गोबिंदसागर को लबालब कर दिया है।
पंजाब की धरती पर बसे आनंदपुर साहिब जहां विरासत ए खालसा का विशाल खूबसूरत परिसर है, से 83 किलोमीटर दूर बसे बिलासपुर को इस झील के किनारे बसे सुंदर स्थलों में गिना जाता है। जब भाखड़ा बांध का निर्माण हुआ तो पुराने बिलासपुर शहर को जल समाधि देनी पड़ी और भारत की संभवतः सबसे बड़ी मानव निर्मित लगभग 170 वर्ग किमी क्षेत्र में फैली खूबसूरत झील गोबिंदसागर का जन्म हुआ। पहाड़ी रास्ते पर यात्रा के दौरान हरे नीले पानी के लुभावने टुकड़े कभी दिखते हैं तो कभी छिपते हैं मगर खूब लुभाते हैं। यहाँ कैमरा आपको गाड़ी से उतरने को उकसाता है और आप गाड़ी रोककर चहलकदमी कर रहे होते हैं और नीले आसमान, छोटी छोटी हरी भरी पहाड़ियों की गोद में पसरे सागर को दिल में उतार लेना चाहते हैं। इस लघुसागर के किनारे अनगिनत मुहानों पर नई पुरानी किश्तियां घंटों जलआनंद देने के लिए तैयार हैं। गोबिन्दसागर भरपूर आबाद है। विशाल क्षेत्र में बसे दर्जनों गांव भी गोबिंदसागर में पानी लौट आने से नए ढंग से आबाद होते हैं। पैदल लिसलिसी धूल रेत मिट्टी से भरे रास्ते जलमार्ग हो जाते हैं। हजारों क्षेत्रवासियों का आवागमन इन जलमार्गों से होने लगता है। पुरानी किश्तियां पुनः सँवारी जाती हैं और नई बनाई जाती हैं। कई पुराने और नए धंधे आबाद करता है गोबिंदसागर का पानी पानी होना। मतस्यपालन ज्यादा जान पकड़ता है। स्वादिष्ट मछली दूर दूर तक स्वाद बांटती है, कोलकोता तक। इसी पानी पर तैरते हुए नावें घुमक्कड़ या यात्रियों को भाखड़ा, नैनादेवी, कंदरौर स्थित कभी एशिया के सबसे ऊंचे पुल तक या उससे आगे भी ले जाती हैं। बिलासपुर में समयोचित पर प्रशासन द्वारा बोटिंग के अतिरिक्त अन्य जल क्रीड़ाएँ भी आयोजित की जाती हैं।
सतलुज नदी से बने गोबिंद सागर की गहरी गोद में पसरा जल सुबह से शाम तक कितने ही रंग बदलता है। आसपास फैली पर्वत श्रृंखलाओं की उंचाइयों पर जाकर दूर दूर तक फैली पनीली सुन्दरता का मज़ा लिया जा सकता है। बिलासपुर बंदला सड़क एक ऐसा ही लुभावना रास्ता है जहां कई मोड़ ऐसे हैं जहां रूककर बिलासपुर शहर और दूर दूर के नयनाभिराम नज़ारों का लुत्फ दिल खोलकर लिया जा सकता है। बीच में पक्की पगडंडी से जाकर झील से लबरेज़ धरती की खूबसूरती का स्वर्गिक निर्मल आनंद लिया जा सकता है। यहां बैंच लगे हैं जहां अक्सर क्षेत्रवासी और पर्यटक पिकनिक के लिए आते हैं। शाम होते और रात के समय बस्तियों की रोशनियाँ ठहरे पानी को रहस्यमय बना देती हैं। अली खड्ड पुल के कारण झील के पड़ोस में एक और आकर्षण जुड़ गया है। गोबिंदसागर झील में आते-जाते विशेषकर बच्चों को बहुत दूर से ही यह पुल लुभाने लगता है। पुल के पास या नीचे से गुजरते समय इधर से उधर सरपट भाग रही गाड़ियों को वे सुलभ बालमन की लम्बी बाहों व भावनाओं की अंगुलियों से छेड़ लेते हैं। लारियां आती जाती हैं और पुल थरथराता रहता है।
पुराने बिलासपुर शहर में सातवीं शताब्दी से 12वीं शताब्दी के बीच बने शिखर शैली के मंदिर गोबिंदसागर के निर्माण की पनीली गोद में समा चुके हैं। जब पानी उतरता है मंदिर के ऊपरी हिस्से दिखने लगते हैं तो इन्हीं मंदिरों के कलात्मक सानिध्य में अनेक पिकनिक प्रेमी रात का खाना एन्जॉय करते हैं।