इन झोपड़ों को देख भूल जायेंगे लक्सरी होटल
कोलकाता टाइम्स :
नक्सलियों के आतंक के चलते छत्तीसगढ़ के जिस बस्तर में आम व्यक्ति भी जाने से हिचकता है, वहां आज विदेशी पर्यटक तक आ रहे हैं। लाखों-करोड़ों खर्च कर बड़े-बड़े लग्जरी रिसॉर्ट तैयार करने के बाद भी राज्य पर्यटन विभाग यहां पर्यटकों को आकर्षित नहीं कर सका, लेकिन एक साधारण से किसान ने बस्तर के एक नहीं, पांच-पांच गांवों को पर्यटन केंद्र में तब्दील कर दिया है। जगदलपुर ब्लॉक के ग्राम पराली के किसान शकील रिजवी ने यह कमाल किया है। उन्होंने न केवल इस ब्लॉक के पांच गांवों को पर्यटन हब के रूप में विकसित कर दिया है, वरन विदेशी सैलानियों को भी यहां लाने में वह कामयाब हो गए हैं। विदेशी पर्यटक ग्रामीणों के घर पेइंग गेस्ट के रूप में ठहरते हैं। वे आदिवासियों की संस्कृति को करीब से देखते, समझते, घूमते-फिरते, खाते-पीते हैं। इससे ग्रामीणों को अतिरिक्त आमदनी भी हो रही है। शहर से 18 किलोमीटर दूर पराली के शकील प्रकृति से काफी लगाव रखते हैं, इसीलिए वह शहर छोड़कर यहां आकर बस गए। वह तीन एकड़ कृषि भूमि में सब्जी उगाकर घर-गृहस्थी चलाते हैं। 2006 के आसपास नेतानार हाट में उन्हें स्विटजरलैंड के कुछ सैलानी मिल गए। बातचीत की तो लगा कि इनमें आदिवासी संस्कृति को समझने, उनका रहन-सहन, परंपरा, उत्सव आदि के बारे में जानने की जिज्ञासा है। तभी विचार आया कि क्यों न इन्हें गांवों में ही ठहराया जाए, ताकि वे आदिवासी संस्कृति को समझ सकें। इसके बाद उन्होंने यह काम प्रारंभ किया। करीब एक सप्ताह से ग्रामीण बुधराम के घर ठहरे इटली के पेशेवर फोटोग्राफर विली आदिवासी परिधान पहने हुए थे और आदिवासियों के बीच पूरी तरह घुल मिल गए थे। विली ने बताया कि बस्तर के धुरवा जनजातीय समाज का अध्ययन करने की ललक उन्हें यहां खींच लाई। यहां वह मुर्गा लड़ाई से लेकर जात्रा, सल्फी, लांदा व चापड़ा चटनी सभी का लुत्फ ले चुके हैं। वह कहते हैं, उन्होंने जो तस्वीरें ली हैं और जो अनुभव किया है, उसे इटली की एक मैग्जीन में प्रकाशित करवाएंगे और यहां से जाने के बाद अपने मित्रों को भी यहां आने के लिए कहेंगे। बता दें कि पहली बार शकील ने जर्मनी के दो पर्यटकों को धुरवा आदिवासी के घर ठहराया था। सप्ताह भर पांच गांवों का भ्रमण करने के बाद जाते समय दोनों ने ग्रामीणों को अच्छे खासे रुपए दिए थे। इसके बाद शकील ने एक-एक कर नेतानार, गुड़िया, नानगूर, छोटेकवाली, बोदेल आदि गांवों को भी इस पर्यटन हब से जोड़ लिया। प्रेरित करने पर कई ग्रामीणों ने अपने घरों में एक-एक अतिरिक्त कमरे भी बनवा लिए। अब तो आलम यह है कि हर साल 50-60 पर्यटक शकील के पास आते हैं, जिन्हें बस्तर के विभिन्न ग्रामों में ठहराया जाता है। इन पर्यटकों को होटल में ठहरना पसंद नहीं, इन्हें नया तर्जुबा चाहिए, जो इन आदिवासियों के घर में ही उन्हें मिलता है।