सावधान : हमारा यह ‘जीवन’ ही बनेगा तीसरे विश्व युद्ध का कारण
कोलकाता टाइम्स
पानी प्रकृति की ऐसी देन है जिसके बगैर जीवन असंभव है। लेकिन इस अमृत को सहेजने में इंसान विफल साबित हो रहा है। अब इस मुद्दे पर सचेत करने वाली रिपोर्ट आई है जिसके मुताबिक भविष्य में पानी के लिए ऐसा जंग होगा जो तीसरे विश्व युद्ध की शुरुवात भी कर सकती है।
शोधकर्ताओं ने दुनियाभर में पांच क्षेत्रों को चिंहित किया है, जहां अगले सौ सालों में पानी को लेकर वैश्विक संघर्ष होगा। ग्लोबल एनवायरमेंटल चेंज में प्रकाशित इस रिपोर्ट के मुताबिक इसमें नील नदी, गंगा-ब्रह्मपुत्र, सिंधु, दजला-फरात (टाइग्रिस- यूफ्रेट्स) और कोलोराडो नदी शामिल हैं। इसके लिए मशीन लर्निंग तकनीक इस्तेमाल की गई है।
धरती की सतह पर मौजूद 71 फीसद पानी में 97 फीसद सागर और महासागर में खारा पानी है जिसे इंसान पीने और खाना पकाने के लिए इस्तेमाल नहीं कर सकता है। महज तीन फीसद पानी पीने योग्य है जिसमें से भी 2.4 फीसद उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव पर जमा है। सिर्फ 0.6 फीसद नदियों, झीलों और तालाब के रूप में मौजूद है।
भविष्य में पानी का संकट बढ़ाने के दो कारक मुख्य हैं। पहला जलवायु परिवर्तन होगा जिससे भीषण गर्मी, लू की लपटें और सूखा पड़ेगा। दूसरा इंसानी आबादी का दवाब पानी की कमी का अहम कारण होगा।
यूरोपियन कमीशन की संयुक्त शोध टीम ने मशीन लर्निंग विधि के जरिए पानी के संकट से भविष्य की स्थिति और वजहों को जानने की कोशिश की है ताकि चिह्नित क्षेत्रों में मौजूद जल संसाधनों को संरक्षित किया जा सके। खासतौर वह क्षेत्र जहां जल स्नोत सीमावर्ती देशों द्वारा साझा किए जाते हैं।
सौ साल में पानी के संकट जूझ रहे क्षेत्रों में गंगा-ब्रह्मपुत्र और सिंधु नदी का शामिल होना स्पष्ट संकेत देता है कि भारत भी इस जल युद्ध में शामिल होगा। पानी का अभाव राजनीतिक संघर्ष भी पैदा करेगा। सरकारों पर स्वच्छ पानी मुहैया कराने का दवाब होगा। संकट से जूझ रहे देशों की सरकारों और पर्याप्त पानी के स्नोत वाले देशों के बीच भी युद्ध की स्थितियां बनेंगी। पानी के स्नोत बांटने वाले देशों के बीच आर्थिक और सामाजिक अस्थिरता आएगी।