70 सालों से इस देश में नहीं हुआ कोई अंतिम संस्कार
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कोलकाता टाइम्स :
सर्दियों के मौसम में यहां का तापमान इतना कम हो जाता है कि ज़िंदगी मुश्किल हो जाती है। 2000 के आबादी वाले इस शहर में लोगों को मरने की इजाजत नहीं है। प्रशासन द्वारा पाबंदी लगाए जाने के बाद पिछले 70 साल से यहां कोई मौत नहीं हुई है। दरअसल इस पाबंदी के पीछे वजह काफी बड़ी है।
नार्वे के छोटे से शहर लॉन्गइयरबेन में प्रकृति के नियमों के खिलाफ जाकर प्रशासन ने मौत पर पाबंदी लगा दी है। नार्वे और उत्री ध्रुव के बीच स्थित इस आईलैंड पर खून जमा देने वाली ठंड पड़ती है।
दरअसल यहां पड़ने वाली कड़ाके की ठंड की वजह से यहां डेड बॉडी सालों तक ज्यों की त्यों पड़ी रहती है। ठंड की वजह से वो ना वो गलती है ना ही सड़ती है। सालों तक शव वैसे का वैसा ही रह जाता है। इस शोध में ये पाया गया कि साल 1917 में जिस शख्स की मौत इनफ्लुएंजा की वजह से हुई उसके शव में इनफ्लुएंजा के वायरस जस के तस पड़े थे। जिससे बीमारी फैलना का खतरा मंडराने लगा। इसके बाद प्रशासन ने इस शहर में मौत पर पाबंदी लगा दी। ऐएसे में यहां जैसे ही कोई मरने वाला होता है या कोई इमरजेंसी आती है उस व्यक्ति को हेलिकॉप्टर से देश के दूसरे इलाके में ले जाता है, और मरने के बाद वहीं पर उसका अंतिम संस्कार किया जाता है।
दरअसल यहां पड़ने वाली कड़ाके की ठंड की वजह से यहां डेड बॉडी सालों तक ज्यों की त्यों पड़ी रहती है। ठंड की वजह से वो ना वो गलती है ना ही सड़ती है। सालों तक शव वैसे का वैसा ही रह जाता है। इस शोध में ये पाया गया कि साल 1917 में जिस शख्स की मौत इनफ्लुएंजा की वजह से हुई उसके शव में इनफ्लुएंजा के वायरस जस के तस पड़े थे। जिससे बीमारी फैलना का खतरा मंडराने लगा। इसके बाद प्रशासन ने इस शहर में मौत पर पाबंदी लगा दी। ऐएसे में यहां जैसे ही कोई मरने वाला होता है या कोई इमरजेंसी आती है उस व्यक्ति को हेलिकॉप्टर से देश के दूसरे इलाके में ले जाता है, और मरने के बाद वहीं पर उसका अंतिम संस्कार किया जाता है।