रिक्शा वाले से प्रिंसिपल तक का सफर
मगर.2004 उनके लिए संजीवनी बनकर आया। एक रोज संत बलबीर सिंह सीचेवाल उसकी झुग्गी में पहुंचे। वहां आसपास के लोगों के साथ बैठक की। उन्हें प्रेरित किया बचों को क्यों नहीं पढ़ाते? हां, यह भी सलाह दी कि अगर उनके बीच ही कोई पढ़ा लिखा हो तो क्या कहने.. फिर क्या था, भूषण का नाम सभी की जुबां पर आया। पता चला, वह मैटिक पास है। बाबा ने उसे मिलने का वक्त देकर अपने पास बुलाया और लौट गए।
चूंकि, भूषण नशे के आदी थे। मां के बहुत कहने पर बाबा के पास पहुंचे। यहां संत बलबीर सिंह सीचेलाल ने सवाल किया, क्या अपनी झुग्गी बस्ती के बचों को पढ़ाओगे..? भूषण असमंजस में पड़ गए। जुबां से चंद शब्द ही निकले-वादा नहीं करता, कोशिश करूंगा। इसके बाद 12 बच्चों संग काली बेई के किनारे पेड़ के नीचे क्लास शुरू कर दी। हालांकि, इस दौरान वह शराब का मोह नहीं छोड़ सके। यहां भी संत की संगत काम आई। संत सीचेवाल ने काउंसिंलग की तो भूषण ने मन पक्का कर लिया। प्रण किया, शराब को हाथ नहीं लगाऊंगा। वही हुआ, भूषण ने पूरी तरह नशे से तौबा कर ली।
बस फिर क्या था दौड़ पड़ी भूषण की जिंदगी नयी पटरी पर। आज भूषण सैंकड़ों बच्चों के लिए मिशाल हैं।