यहां महिलाएं कभी नहीं होतीं ‘विधवा’
[kodex_post_like_buttons]
कोलकाता टाइम्स :
हैरान कर देगा इस गांव की परंपरा जहाँ भारतीय दर्शन को बदलकर ही नरख दिया है। भोपाल का एक गांव ऐसा है जहां महिलाएं कभी विधवा नहीं होतीं है। मंडला जिले के बिहंगा गांव की कहानी दूसरे गांवों से बिल्कुल अलग है। इस गांव में विधवाएं नहीं मिलती हैं। ये हकीकत है, गोंड आदिवासी बहुल बिहंगा गांव में अगर किसी महिला के पति की मौत हो जाती है। तो उन औरतों को वैधव्य जीवन गुजारने की जरूरत नहीं है।
प्रथा के मुताबिक घर में मौजूद कुंवारे शख्स से उसकी शादी कर दी जाती है। शादी के लिए ये जरूरी नहीं है कि वो महिला का जेठ हो या देवर। अगर घर में नाती पोते शादी के लायक हैं तो उनसे शादी करा दी जाती है। अगर कोई पुरुष शादी के लिए इनकार करता है या उपलब्ध नहीं है को दूसरी प्रक्रिया अपनाई जाती है। विधवा महिला के पति की दसवीं पर दूसरे घरों की महिलाएं चांदी की चूड़ी उपहार के तौर पर देती हैं। जिसे पाटो कहा जाता है। इस विधि के बाद विधवा महिला को शादीशुदा मान लिया जाता है और वो विधवा महिला पाटो देने वाली महिला के घर रहने के लिए चली जाती है। इस तरह के बेमेल शादियों में शारीरिक संबंधों के बनने की संभावनाएं कम होती है। लेकिन अगर कोई शारीरिक संबंध बनाता है तो गोंड़ समाज को किसी तरह की आपत्ति भी नहीं होती है।
पतिराम वारखड़े की ऊम्र ६ साल थी जब उसके दादा की मौत हुई। दादा की मौत के ९ दिन बाद पतिराम की शादी उसकी दादी चमरी बाई से नाती पातो परंपरा के तहत कर दी गयी। हालांकि पतिराम के वयस्क होने के बाद उसकी शादी उसकी मर्जी की लड़की से हुई। लेकिन उसकी बीवी को उसकी दादी के मरने तक दूसरी पत्नी का ही दर्जी हासिल रहा। ७५ साल की सुंदरो बाई कुरवाती की शादी देवर पातो परंपरा के तहत संपत शख्स नाम के साथ कर दी गई जिनकी उम्र ६५ साल है। सुंदरो बाई का कहना है कि उनके पति की मौत शादी के दो साल बाद हो गई। पति की मौत के बाद उनके श्राद्ध में लोगों ने महज इस लिए शामिल होने से इनकार कर दिया कि उसके घर का कोई शादी नहीं करना चाहता था। इसी तरह कृपाल सिंह वारखड़े का कहना है कि उसने अपने से पांच साल छोटी अपनी साली होंसू बाई से शादी की। कृपाल सिंह का कहना है कि ये हमारी परंपरा है। उसे वैधव्य जीवन जीने की जरूरत ही क्या है।
पतिराम वारखड़े की ऊम्र ६ साल थी जब उसके दादा की मौत हुई। दादा की मौत के ९ दिन बाद पतिराम की शादी उसकी दादी चमरी बाई से नाती पातो परंपरा के तहत कर दी गयी। हालांकि पतिराम के वयस्क होने के बाद उसकी शादी उसकी मर्जी की लड़की से हुई। लेकिन उसकी बीवी को उसकी दादी के मरने तक दूसरी पत्नी का ही दर्जी हासिल रहा। ७५ साल की सुंदरो बाई कुरवाती की शादी देवर पातो परंपरा के तहत संपत शख्स नाम के साथ कर दी गई जिनकी उम्र ६५ साल है। सुंदरो बाई का कहना है कि उनके पति की मौत शादी के दो साल बाद हो गई। पति की मौत के बाद उनके श्राद्ध में लोगों ने महज इस लिए शामिल होने से इनकार कर दिया कि उसके घर का कोई शादी नहीं करना चाहता था। इसी तरह कृपाल सिंह वारखड़े का कहना है कि उसने अपने से पांच साल छोटी अपनी साली होंसू बाई से शादी की। कृपाल सिंह का कहना है कि ये हमारी परंपरा है। उसे वैधव्य जीवन जीने की जरूरत ही क्या है।