यह खास दवा बचाएगा की-बोर्ड और रिमोट से भी फैलने वाले स्वाइन फ्लू से
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कोलकाता टाइम्स :
स्वाइन फ्लू श्वसन तंत्र से जुड़ी बीमारी है जो ए टाइप के इनफ्लुएंजा वायरस से होती है। इसके वायरस सबसे ज्यादा सूअरों में पाए जाते हैं जिससे ये फैलता हैं इसीलिए इसको स्वाइन फ्लू नाम दिया गया है। यह वायरस एच1 एन1 के नाम से जाना जाता है।
खांसने या छींकने की वजह से हवा में या जमीन पर या जिस भी सतह पर थूक या मुंह और नाक से निकले द्रव कण गिरते हैं, वह इस भयानक वायरस की चपेट में आ जाता है। यह कण हवा के द्वारा या किसी के छूने से दूसरे व्यक्ति के शरीर में मुंह या नाक के जरिए प्रवेश कर जाते हैं। मसलन, दरवाजे, फोन, कीबोर्ड या रिमोट कंट्रोल के जरिए भी यह वायरस फैल सकते हैं, अगर इन चीजों का इस्तेमाल किसी संक्रमित व्यक्ति ने किया हो।
बचने की सख्त जरुरत: पांच साल से कम उम्र के बच्चे, खासतौर से दो साल से कम उम्र वाले, 65 साल या इससे अधिक उम्र के बुजुर्ग, गर्भवती महिला या जच्चा को मातृत्व के बाद दो हफ्तों तक। ऐसे लोग जो पुरानी मेडिकल समस्याओं से पीड़ित हों जैसे कि फेफड़े की बीमारी जिसमें अस्थमा भी शामिल है, खासतौर से जिसने पिछले एक साल में स्टेरॉइड लिया हो; किडनी की पुरानी बीमारी हो, लिवर की बीमारी हो, हाइपरटेंशन हो, डायबीटीज हो, सिकल सेल डिजीज हो, अन्य पुरानी बीमारियां एवं गंभीर मोटापा।
खांसने या छींकने की वजह से हवा में या जमीन पर या जिस भी सतह पर थूक या मुंह और नाक से निकले द्रव कण गिरते हैं, वह इस भयानक वायरस की चपेट में आ जाता है। यह कण हवा के द्वारा या किसी के छूने से दूसरे व्यक्ति के शरीर में मुंह या नाक के जरिए प्रवेश कर जाते हैं। मसलन, दरवाजे, फोन, कीबोर्ड या रिमोट कंट्रोल के जरिए भी यह वायरस फैल सकते हैं, अगर इन चीजों का इस्तेमाल किसी संक्रमित व्यक्ति ने किया हो।
बचने की सख्त जरुरत: पांच साल से कम उम्र के बच्चे, खासतौर से दो साल से कम उम्र वाले, 65 साल या इससे अधिक उम्र के बुजुर्ग, गर्भवती महिला या जच्चा को मातृत्व के बाद दो हफ्तों तक। ऐसे लोग जो पुरानी मेडिकल समस्याओं से पीड़ित हों जैसे कि फेफड़े की बीमारी जिसमें अस्थमा भी शामिल है, खासतौर से जिसने पिछले एक साल में स्टेरॉइड लिया हो; किडनी की पुरानी बीमारी हो, लिवर की बीमारी हो, हाइपरटेंशन हो, डायबीटीज हो, सिकल सेल डिजीज हो, अन्य पुरानी बीमारियां एवं गंभीर मोटापा।
गर्भवती महिलाओं का प्रतिरोधक तंत्र (इम्यून सिस्टम) शरीर में होने वाले हॉर्मोन संबंधी बदलावों के कारण कमजोर होता है। खासतौर पर गर्भावस्था के तीसरे चरण यानी 27वें से 40वें सप्ताह के बीच उन्हें ज्यादा ध्यान रखने की जरूरत है। इस समय उनका इस वायरस के ज्यादा सम्पर्क में आने का खतरा रहता है।
ओसेलटामिविर एंटीबॉयोटिक है इलाज : डॉक्टरों के अनुसार स्वाइन फ्लू की शुरुआती लक्षण को खत्म करने के लिए ओसेलटामिविर नामक एक दवा दी जाती है। इसे दिन में दो बार 75 मिलीग्राम तक की मात्रा में लिया जाना चाहिए। और रोगी की देखभाल करने वाला व्यक्ति भी इस संक्रमण के चपेट में न आ जाएं। उसे भी दिन में ये दवा एक बार लेनी चाहिए।
ओसेलटामिविर एंटीबॉयोटिक है इलाज : डॉक्टरों के अनुसार स्वाइन फ्लू की शुरुआती लक्षण को खत्म करने के लिए ओसेलटामिविर नामक एक दवा दी जाती है। इसे दिन में दो बार 75 मिलीग्राम तक की मात्रा में लिया जाना चाहिए। और रोगी की देखभाल करने वाला व्यक्ति भी इस संक्रमण के चपेट में न आ जाएं। उसे भी दिन में ये दवा एक बार लेनी चाहिए।