पूजा-पाठ में कुंकुम का है वैज्ञानिक महत्व भी, क्यों जरूरी होता है?
कोलकाता टाइम्स ;
पूजा में भगवान को अर्पित की जाने वाली चीजों का धार्मिक के साथ ही वैज्ञानिक महत्व भी है। ये सभी चीजें हमारे जीवन से जुड़ी हुई हैं। भगवान को जो सामग्रियां चढ़ाई जाती हैं, उनका भाव यही है कि हम जो भी भगवान को चढ़ाते हैं, उनका फल हमें मिलता है। पूजन कर्म में खासतौर पर कुंकुम का विशेष महत्व है। भगवान को कुंकुम से तिलक लगाया जाता है, हमारे माथे पर कुंकुम लगाते हैं। उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार जानिए कुंकुम से जुड़ी खास बातें…
कुंकुम से जुड़ी खास बातें
सभी मांगलिक कर्मों में जरूरी है कुंकुम
कुंकुम पूजा की सबसे जरूरी सामग्रियों में से एक है। पूजा के अलावा सभी मांगलिक कर्मों में भी कुंकुम का उपयोग होता है। घर हो या मंदिर हर जगह पूजा की थाली में कुंकुम रखा जाता है। कुंकुम का लाल रंग प्रेम, उत्साह, उमंग, साहस और शौर्य का प्रतीक है। इससे प्रसन्नता का संचार होता है। ग्रंथों में भी इसे दिव्यता का प्रतीक माना गया है।
> नवदुर्गा पूजा विधान में लिखा है कि कुंकुम कान्तिदम दिव्यम् कामिनीकामसंभवम्।
> इसका अर्थ यह है कि कुंकुम अनंत कांति प्रदान करने वाला पवित्र पदार्थ है, जो स्त्रियों की संपूर्ण कामनाओं को पूरा करने वाला है।
दैनिक जीवन में कब-कब जरूरी है कुंकुम
पूजा-पाठ के साथ ही दैनिक जीवन में भी कुंकुम का उपयोग होता है। पुरुष तिलक और महिलाएं कुंकुम की बिंदी लगाती हैं। पुराने समय में राजा जब युद्ध के लिए जाते थे, तब उनकी विजय के लिए प्रतीक के रूप में कुंकुम का तिलक लगाया जाता था। राजतिलक के समय भी तिलक लगाया जाता था। इस परंपरा का आशय ये है कि दायित्व के निर्वहन की शुरुआत कुंकुम से की जाए, क्योंकि कुंकम ही विजय है, दायित्व है और मंगल भी। कुंकुम का तिलक सम्मान का प्रतीक है। ये तिलक हमें जिम्मेदारी का अहसास करता है।
कुंकुम का वैज्ञानिक महत्व
आयुर्वेद में कुंकुम को औषधि माना गया है। इसे हल्दी और चूने या नींबू के रस में हल्दी को मिलाकर बनाया जाता है। हल्दी खून को साफ करती है और शरीर की त्वचा का सौंदर्य बढ़ाती है। कुंकुम से त्वचा का आकर्षण बढ़ता है। माथे के आज्ञा चक्र पर कुंकुम की बिंदी लगाई जाती है, इससे मन की एकाग्रता बढ़ती है, मन व्यर्थ की बातों में नहीं भटकता है।