July 2, 2024     Select Language
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यह पत्थर आपको पहुंचा देगा पाषाणयुग के समय में

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कोलकाता टाइम्स :

ध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल के लगभग 45 किमी दूर भीम बेठिका या भीम बैटका यह आदिम मनुष्यों का पुरापाषाणिक ( Paleolithic), आवासीय स्थल है। रातापानी वन्य अभ्यारण में स्थित इन प्राग-ऐतिहासिक शिलाओं में निर्मित गुफाओं व प्राकृतिक शैलाश्रयों (Rock Shelters) में हजारों साल पहले मानव के पाषाणयुग पूर्वज रहा करते थे। भीमबैटका आदि-मानव द्वारा बनाए गए शैल चित्रों और शैलाश्रयों के लिए प्रसिद्ध है।

यहां सैकड़ों शैलाश्रय हैं जिनमें लगभग 500 से अधिक शैलाश्रय चित्रों से सजाए गए हैं। सबसे अनोखे तो यहां शैलाश्रयों की अंदरूनी सतहों में उत्कीर्ण प्यालेनुमा निशान है जिनका निर्माण एक लाख वर्ष पुराना हुआ था।

यहां हर जगह सामूहिक नृत्य, रेखांकित मानवाकृति, शिकार, पशु-पक्षी, युद्ध और प्राचीन मानव जीवन के दैनिक क्रियाकलापों से जुड़े चित्र मिलते हैं। सबसे आश्चर्य की बात है कि इन चित्रों में प्रयोग किए गए खनिज रंगों में मुख्य रूप से गेरुआ, लाल और सफेद हैं और कहीं-कहीं पीला और हरा रंग भी प्रयोग हुआ है, जो इतने हजार वर्षों बाद भी वैसे ही सजीव दिखाई देते हैं।

यहां नित्य दैनिक जीवन की घटनाओं से लिए गए विषय जैसे सामूहिक नृत्य, संगीत, शिकार, घोड़ों और हाथियों की सवारी, आभूषणों तथा शहद जमा करने के बारे में हैं।

इनके अलावा यहां उस समय के खतरों जैसे बाघ, सिंह, कुत्तों और घडियालों जैसे जानवरों को भी चित्रित किया गया है। जंगली सुअर, हाथियों और बैलों के विशाल चित्र यहां उनके विशाल आकार को दर्शाते हैं। इन चित्रों से उस समय की सामाजिक जीवन संरचना और मानव विकास को समझा जा सकता है।

इस जगह को पहले पहल स्थानीय आदिवासियों द्वारा बुद्ध या महाभारतकालीन पांडवों की निशानी के तौर पर चिन्हित किया गया था। परंतु भारत के प्रसिद्ध पुरातत्‍व विशेषज्ञ डॉक्टर वीएस वाकणकर ने 1958 में नागपुर जाते समय इन चट्टानों को देखा और इन गुफाओं की खोज की थी। इस जगह पर बिखरे पुरातात्विक खजाने को देख उन्होंने पाया कि यहां मौजूद शैल चित्र ऑस्ट्रेलिया के कालाहारी रेगिस्तान में मौजूद काकादू नेशनल पार्क, जहां बुशमैन गुफाओं और फ्रांस की लासकॉउक्स गुफाओंमें भी ऐसे ही शैल चित्र मिले हैं।

उनके प्रयास को सरकार ने भी मान्यता प्रदान की और इस जगह को पुरातात्विक विभाग ने संरक्षित किया। इन प्रयासो के बाद यूनेस्को ने 2003 में आदिमानव के इस पुरापाषाणिक शैलाश्रय को विश्व धरोहर का दर्जा दिया है।यह स्थान भोपाल से 45 किमी की दूरी पर भोपाल-होशंगाबाद राजमार्ग पर रायसेन जिले में ओबेदुल्लागंज कस्बे से 9 किमी की दूरी पर है।

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