इस खास वजह बृहस्पतिवार के दिन ही होती है भगवान विष्णु की पूजा
कोलकाता टाइम्स :
बृहस्पतिवार का दिन जगत के पालनहार भगवान श्रीहरि विष्णु और देवों के गुरु बृहस्पति देव के लिए निर्धारित है। इस दिन विधि विधान से भगवान विष्णु और बृहस्पति देव की पूजा अर्चना की जाती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान विष्णु पीताम्बरधारी हैं अर्थात् वह पीले वस्त्र पहनते हैं।
कहा जाता है कि पक्षियों में सबसे विशाल गरुड़ ने भगवान विष्णु को कठिन तपस्या करके प्रसन्न किया था, जिसके फलस्वरूप भगवान विष्णु ने उनको अपने वाहन के रूप में स्वीकार किया। गुरु का अर्थ भारी होता है और गरुड़ भी पक्षियों में सबसे भारी हैं। गरुड़ की सफल तपस्या के कारण गुरुवार का दिन भगवान विष्णु की पूजा को समर्पित हो गया।
बृहस्पतिवार को गुरुवार और वीरवार क्यों कहते हैं?
देवतों के गुरु बृहस्पति हैं, बृहस्पतिवार के दिन उनकी भी पूजा होती है, इसलिए बृहस्पतिवार को गुरुवार भी कहा जाता है। वीरवार से जुड़ी एक कथा है- कहा जाता है कि भगवान शिव के बड़े पुत्र कार्तिकेय ने बृहस्पति देव की उपस्थिति में बाणासुर का वध किया था, इसलिए उस दिन को वीरवार कहा जाने लगा।
बृहस्पतिवार को गुरुवार और वीरवार क्यों कहते हैं?
देवतों के गुरु बृहस्पति हैं, बृहस्पतिवार के दिन उनकी भी पूजा होती है, इसलिए बृहस्पतिवार को गुरुवार भी कहा जाता है। वीरवार से जुड़ी एक कथा है- कहा जाता है कि भगवान शिव के बड़े पुत्र कार्तिकेय ने बृहस्पति देव की उपस्थिति में बाणासुर का वध किया था, इसलिए उस दिन को वीरवार कहा जाने लगा।
बृहस्पतिवार पूजा का महत्व : बृहस्पतिवार के दिन केले के पेड़ की पूजा करने का विधान है। ऐसी मान्यता है कि केले के पेड़ में भगवान विष्णु का वास होता है। इस दिन भगवान विष्णु का व्रत और पूजा करने से मनोकामानाएं पूर्ण होती हैं, स्वास्थ्य लाभ होता है और माता लक्ष्मी सदा प्रसन्न रहती हैं। बृहस्पति देव को ज्ञान का कारक माना जाता है, इसलिए विद्यार्थी यदि यह व्रत रखते हैं या पूजा करते हैं तो परीक्षा में सफलता प्राप्त होती है।