होली पर अपने आप जल जाती हैं लकडिय़ां, लग जाती है आग
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इंदौर में बागली से 8 किमी दूर जटाशंकर गांव केसमीप नयाखूंट के जंगल में एक ऐसी जगह है जहां होली पर अपने आप ही आग लग जाती है। इसमें हजारों क्विंटल लकड़ी जलकर खाक हो जाती है। ग्रामीण इसे होली माल और होली टेकरी के नाम से पुकारते हैं। जंगल में इस जगह पर साल भर लोग स्वेच्छा से लकडिय़ां डालते रहते हैं, जो हजारों क्विंटल तक पहुंच जाती है। इसके पीछे मान्यता है कि जो व्यक्ति लकड़ी नहीं डालता, उसे परेशानियों का सामना करना पड़ता है। हजारों क्विंटल लकडियां चमत्कारी रूप से होली की रात में सुबह 4 से 5 के बीच में खुद ही जलने लगती हैं।
इसके पास में ही नृसिंह भगवान का मंदिर है। लोगों का मानना है भूमि चमन ऋषि की तपोभूमि है। यहां से चंद्रकेश्वर व जटाशंकर की दूरी कम है और दोनों स्थान चमन ऋषि और जटायू की तपोभूमि होकर भगवान शंकर के प्राकृतिक जलाभिषेक तीर्थ हैं।
लोगों की मान्यता और बढ़ गयी जब सारे जंगल में आग लगी और इस जगह की सारी लकडिय़ां सुरक्षित रहीं। होली टेकरी की लकडिय़ों को जब हटाया गया तो वहां गत वर्ष जली हुए लकडिय़ों की राख दिखी। इन लकडिय़ों को कोई चुराता भी नही है।