शहर में लोग अकसर परेशान रहते हैं
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सलिल सरोज
कहीं मुर्दे तो कहीं श्मशान रहते हैं
शहर में लोग अकसर परेशान रहते हैं
दुनिया क्या कुछ कह कर नहीं बुलाती
जो लोग जिन्दगी भर नादान रहते हैं
नौकरी मोहलत नहीं देती है बसर की
घरों में तो बस बेजान सामान रहते हैं
सरकार के मुआवज़े से क्या होता है
तूफाँ की जद में लाखों मकाँ रहते हैं
कोई वादा काफी नहीं उम्र भर के लिए
किस गलतफहमी में हुक्मरान रहते हैं
क्या अजब खेल है ये लोक-शाही भी
जिसे बोलना चाहिए,बेज़ुबान रहते हैं