October 1, 2024     Select Language
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गणपति पर कभी न चढ़ाये तुलसी पत्र क्योंकि ….. 

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कोलकाता टाइम्स :
गवान की पूजा हो और तुलसी को स्थान ना मिले, यह असंभव-सी बात लगती है। हर कोई जानता है कि तुलसी के बिना हरि प्रसाद ग्रहण नहीं करते। यही कारण है कि हर हिंदू पूजा घर में तुलसी सदैव जलपात्र में स्थान पाती ही हैं और उन्हें पूज्य माना जाता है। लेकिन विचित्र तथ्य यह है कि यही परम पूज्य तुलसी देवी देवाधिदेव गणपति की पूजा से दूर रखी जाती हैं। गणपति की पूजा में तुलसी पत्र चढ़ाना निषिद्ध है।
आखिर क्या कारण है कि तुलसी को गणपति पूजा में सम्मान और स्थान नहीं मिला है? आज इसी संदर्भ में एक सुंदर प्रसंग सुनते हैं- भगवान गणपति श्री हरि के अनन्य भक्त माने जाते हैं। अपनी युवावस्था में गणपति पूरे समय श्री विष्णु की आराधना में लीन रहते थे। वे उस समय ब्रह्मचर्य का पालन कर रहे थे और तप और भक्तिमय जीवन बिता रहे थे। ऐसे ही एक दिन सुबह-सवेरे गणपति जी गंगा तट पर ध्यान में लीन होकर श्री हरि का ध्यान कर रहे थे। उस समय गणेश जी का रूप अत्यंत आकर्षक दिख रहा था। उनके चेहरे से तेज टपक रहा था। ऐसे समय में धर्मात्मज की पुत्री तुलसी गंगा तट पर पूजन सामग्री विसर्जित करने आईं। वे भी विष्णु भगवान की परम भक्त थीं और जीवन का हर कार्य विष्णु जी का संकेत मानकर किया करती थीं।
गणेश जी ने ठुकराया तुलसी का प्रस्ताव : प्रातःकाल की उस मनोरम बेला में जब तुलसी जी ने गणपति जी को भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए पाया, तो वे उनके आकर्षक रूप पर मुग्ध हो गईं। उन्हें भान हुआ कि संभवतः श्री विष्णु जी ही उन्हें संकेत कर उनके भावी वर से परिचित करवा रहे हैं। ऐसा मानकर तुलसी जी गणेश जी के पास पहुंची और उनके समक्ष विवाह का प्रस्ताव रखा। गणेश जी ने यह कहकर उनका प्रस्ताव ठुकरा दिया कि वे अभी केवल विष्णु जी की कृपा पाने में मन लगाना चाहते हैं।
तुलसी का प्रयोग गणपति की पूजा में निषिद्ध हो गया : परम सुंदरी तुलसी देवी ने इसे अपना अपमान माना और गणेश जी को श्राप दिया कि आज आप यह कह रहे हैं कि आपकी विवाह की इच्छा नहीं है। एक दिन आपका विवाह बड़ी ही मुश्किल से, आपकी इच्छा के बिना, अनजाने में, अचानक ही होगा।
गणेश जी ने भी पलटकर श्राप दिया कि तुमने अकारण दुष्टता की, तो अब तुम्हारा विवाह एक दैत्य से होगा। बाद में श्री हरि की कृपा से दोनों के मतभेद सुलझ गए और दोनों ने ही अपने श्राप का तोड़ भी दे दिया, किंतु उसके बाद से ही तुलसी का प्रयोग गणपति की पूजा में निषिद्ध हो गया।

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