बड़ा फैसला : ‘जब व्याभिचार ही नहीं तो DNA टेस्ट कैसा ?’
भारतीय एविडेंस अधिनियम की धारा 112 का जिक्र करते हुए बेंच ने कहा कि एडल्ट्री (व्याभिचार) साबित करने के लिए सीधे डीएनए टेस्ट का आदेश नहीं दिया जा सकता है और निचली अदालत और हाईकोर्ट ने आदेश पारित करने में गलती की है. बता दें कि ये धारा एक बच्चे की वैधता के अनुमान के बारे में बताती है. पीठ ने कहा कि एडल्ट्री के आरोप को साबित करने के लिए कुछ प्राथमिक सबूत होने चाहिए और उसके बाद ही अदालत डीएनए टेस्ट पर विचार कर सकती है.
याचिका देने वाले इस कपल की शादी 2008 में हुई थी और 2011 में इनके घर एक बेटी का जन्म हुआ था. जिसके छह साल बाद पति ने तलाक की याचिका दायर की थी. इसके बाद उन्होंने बच्चे के डीएनए टेस्ट के लिए फैमिली कोर्ट में अर्जी दाखिल की थी. हालांकि निचली अदालत ने उनकी याचिका को स्वीकार कर लिया जिसे हाईकोर्ट ने भी बरकरार रखा. इसके बाद पत्नी ने सुप्रीम कोर्ट की ओर रुख किया.