November 23, 2024     Select Language
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मीठे व्यंजनों का बहुत करीबी रिश्तेदार है मसाले !

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कोलकाता टाइम्स :
सालों के बारे में एक भ्रांति यह है कि इनका उपयोग नमकीन व्यंजनों में ही होता है। हम अक्सर इस बात को भुला देते हैं या अनदेखा करते हैं जाने कितनी मिठाइयों का आनंद मसालों से बढ़ाया जाता रहा है। सूजी के हलुए को ही लें, क्या किशमिश का साथ सौंफ बखूबी नहीं निभाती? लवंग लता का नाम ही यह जगजाहिर कर देता है कि उसका प्रमुख आकर्षण लौंग है! मीठी ठंडाई के नुस्खे में गुलाब की पंखुडी, मुनक्के, पिस्ते-बादाम के साथ काली मिर्च का रहना अनिवार्य है।

गुलाब जामुन के गर्भ में पिस्ते बादाम के साथ रहने वाले छोटी इलायची के दाने ही इसे असाधारण बनाते हैं। पंजीरी का सेहत के लिए फायदेमंद तीखापन भी याद रखने लायक है। और जाड़े के मौसम में मेथी के लड्डुओं का क्या कहना! हल्दी का मुरब्बा आज कल कम बनाया जाता है पर दूध की मिठास का हल्दी के साथ पारंपरिक नाता है। केसर संसार का सबसे महंगा मसाला समझा जाता है। खीर, रसमलाई, जलेबी, जर्दा, मुजाफर कहां इसके बिना काम चल सकता है?

भारतीय खानपान में ही नहीं पश्चिमी परंपरा में भी अनेक मसालों की कुदरती मिठास उन्हें बिस्कुट, केक, पुडिंग, चॉकलेट का जोड़ीदार बनाती है। क्रिसमस के त्योहार के लिए तैयार किया जाने वाला ‘रिच प्लम पुडिंग’ दर्जनों मसालों से समृद्ध होता है। मीठे बिस्कुटों में अजवाइन का मजेदार जायका रहता है। अमेरिकी एप्पल पाइ दालचीनी के चूरे के छिड़काव के बिना बेस्वाद रह जाती है। जावित्री और जायफल दोनों ही अपनी नायाब हल्की मिठास का पुट घोलते हैं।

आयुर्वेद की तथा यूनानी, चीनी, तिब्बती दवाइयों में ही नहीं ऐलोपैथी की दवाइयों में भी मसालों का प्रयोग होता है। खांसी के शरबतों में मुलैठी तो जुकाम से राहत दिलाने वाली गोलियों, मलहमों में वन अजवाइन (थाइम) और पुदीना (मेंथाल) इफरात से काम लाए जाते हैं। दांत के मंजन से लेकर त्वचा की कांति बढ़ाने वाले उबटन, साबुनों में मसालों के दर्शन होते हैं।

स्वाद का घनिष्ठ नाता गंध से है अत: किसी को इस बात से आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि मसालों का बहुत बड़ा बाजार सुगंधियों तथा सौंदर्य प्रसाधन सामग्री से जुड़ा व्यापार है। नायाब मदिराओं के आसवन में भी उन्हें मादक सुवास प्रदान करने के लिए मसालों का उपयोग होता है। भारत में कुछ बीजों और तिलहन का प्रयोग भी मसाले की तरह होता है। चार चीजें मगज, खसखस, राई, तिल इसी का उदाहरण हैं। भले ही घर के मसालदान में इन्हें जगह नहीं मिलती पर किसी डिबिया में इन्हें सहेज कर रखा जाता है।

जैसे-जैसे हम मसालों से अपना परिचय बढ़ाते हैं खानपान का सुख अपने आप बढ़ने लगता है। रंग हो, गंध या स्वाद हमारे विकल्प सीमित नहीं। सवाल किसी दुर्लभ, महंगे मसाले की जगह सस्ते मसाले का नहीं है, लेकिन अपनी रचनात्मक कल्पनाशीलता से किसी व्यंजन का कायाकल्प करने की चुनौती स्वीकार करना कम रोमांचक नहीं! सबसे बड़ी जरूरत है किसी भी मसाले की खटास, मिठास और नमक के साथ रिश्तों को समझने की। इतना ही महत्वपूर्ण है उनके आपसी (कुदरती) मैत्री या बैर भाव के बारे में संवेदनशील रहने की!

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