मामूली न समझे, छींक के हजारों खतरे
कोलकाता टाइम्स :
मामूली सी लगने वाली एक छींक किसी कमरे को घातक जीवाणुओं से संक्रमित कर सकती है। इसके कारण आसपास का परिवेश घंटों तक दूषित रह सकता है। ब्रिटेन के समाचार पत्र ‘डेली मेल’ में प्रकाशित एक सर्वेक्षण की रिपोर्ट में शोधकर्ताओं ने दावा किया है कि छींकने या खांसने से बाहर आने वाली सूक्ष्म बूंदें आसपास के परिवेश में तैरती रहती हैं। इसमें इतना संक्रमण होता है कि यह आसानी से बीमारी फैला सकती है।
एक छींक में 40,000 सूक्ष्म बूंदें होती हैं। इनमें से कुछ बूंदें शरीर से 160 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से बाहर निकलती हैं। किसी दफ्तर के बन्द कमरे, हवाई जहाज या फिर रेलगाड़ी में छींक या खांसने के माध्यम से बाहर आई इन बूंदों से कोई व्यक्ति एक घंटे के भीतर बीमार पड़ सकता है। इसी से यह पता चलता है कि लम्बी छुट्टियों पर जाने वाले लोगों को यात्रा शुरू होने के साथ ही खासी, जुकाम और छींकने की बीमारी क्यों लग जाती है।
वैज्ञानिक मानते हैं कि संक्रामक जुकाम शारीरिक सम्पर्क के जरिए एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में पहुंचता है। यह छींकने और खासने से सबसे अधिक फैलता है। यह जानकर हैरानी होगी कि एक क्यूबिक मीटर हवा में औसतन 16000 ऐसे तत्व होते हैं, जो जुकाम से जुड़े विषाणुओं से भरपूर होते हैं। ये विषाणु हवा में घंटों तैरते रहते हैं। इनके सम्पर्क में आने से जुकाम जैसी परेशान करने वाली बीमारी आसानी से लग जाती है।