मौज नहीं शगुन और अपशकुन है मकर संक्रान्ति पर पतंग उड़ाने के पीछे
कोलकाता टाइम्स :
मकर संक्रान्ति पर जहां लोग पवित्र गंगा में डुबकी लगाते हैं वहीं दूसरी ओर इस मौके पर जमकर पतंग भी उड़ाते हैं। इस मौके पर खास तौर पर गुड्डी यानी पतंग उड़ायी जाती है।
ऐसा माना जाता है कि पतंग का अविष्कार चीन में हुआ था।
कई किताबों में छपे लेख से पता चलता है कि चीन के बौद्ध भिक्षुओं की वजह से पतंग का शौक भारत पहुंचा।
दुनिया की पहली पतंग एक चीनी दार्शनिक मो दी ने बनाई थी।
इसलिए पतंग का इतिहास लगभग 2300 वर्ष पुराना है।
शगुन और अपशकुन से जुड़ी
पतंग कहीं शगुन और अपशकुन से जुड़ी है तो कहीं ईश्वर तक अपना संदेश पहुंचाने के माध्यम के रूप में प्रतिष्ठित है।
प्राचीन दंतकथाओं पर विश्वास करें तो चीन और जापान में पतंगों का उपयोग सैन्य उद्देश्यों के लिये भी किया जाता था।
थाईलैंड
मान्यताओं के अनुसार थाईलैंड में बारिश के मौसम में लोग भगवान तक अपनी प्रार्थना पहुंचाने के लिये पतंग उड़ाते थे।
सारे शुभ काम
मकर संक्रान्ति से देश में सारे शुभ काम शुरू हो जाते हैं और पतंग भी शुभ संदेश देती है इसलिए इस पर्व पर लोग पतंग उड़ाते हैं।
मन प्रफुल्लित
पतंग उड़ाने से दिल खुश और दिमाग संतुलित रहता है, उसे ऊंचाई तक उड़ाना और कटने से बचाने के लिए हर पल सोचना इंसान को नयी सोच और शक्ति देता है इस कारण पुराने जमाने से लोग पतंग उड़ा रहे हैं।
सूर्य की ऊर्जा पाने के लिए
सर्दी के दिनों में सूरज की रोशनी बहुत जरूरी होती है इस कारण भी लोग पतंग उड़ाते हैं। ऐसा माना जाता है मकर संक्रान्ति से सूरज देवता प्रसन्न होते हैं इस कारण लोग घंटो सूर्य की रोशनी में पतंग उड़ाते हैं इस बहाने उनके शरीर में सीधे सूरज देवता की रोशनी और गर्मी पहुंचती है जो उन्हें सीधे तौर पर विटामिन डी देती है और खांसी, कोल्ड से भी बचाती है।