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इतिहास
परिहार राजाओं के बाद ओरछा चन्देलों और फिर बुंदेलों के अधिकार में रहा। हालांकि चन्देल राजाओं के पराभव के बाद ओरछा श्रीहीन हो गया, लेकिन जब बुंदेलों का शासन आया तो ओरछा ने पुन: अपना गौरव प्राप्त किया। बुंदेला राजा रुद्रप्रताप ने 1531 ई. में नए सिरे से इस नगर की स्थापना की। उन्होंने नगर में मंदिर महल और किले का निर्माण करवाया। यही नहीं, उनके बाद के राजाओं ने भी सौंदर्य से परिपूर्ण कलात्मक इमारतें और भवन बनवाए।
मुगल शासन में ओरछा
मुगल शासक अकबर के समय यहां के राजा मधुकर शाह थे जिनके साथ मुगल सम्राट ने कई युद्ध किए थे। जहांगीर ने वीरसिंहदेव बुंदेला को, जो ओरछा राज्य की बड़ौनी जागीर के स्वामी थे, पूरे ओरछा राज्य की गद्दी दी थी। इसके बदले में वीरसिंहदेव ने जहांगीर के कहने से अकबर के शासन काल में अकबर के विद्वान दरबारी अबुलफजल की हत्या करवा दी थी। वहीं जब शाहजहां का शासन काल आया तो मुगलों ने बुन्देलों से कई असफल लड़ाइयां लड़ीं। किंतु अंत में जुझार सिंह को ओरछा का राजा स्वीकार कर लिया गया।
ओरछा की सुंदरता
ओरछा की विरासत यहां की इमारतों में कैद है। आप महल, किले, पवित्र भव्य मंदिर तथा बुंदेलखण्ड के संस्कृति से जुड़ी प्रतिमा और चित्रकला को देखकर अपने कैमरे में कैद किए बिना रह नहीं सकते। मंदिरों और किलों की खूबसूरती का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि इनकी चमक आज भी बरकरार है।
क्या देखें
राज महल- ओरछा के सबसे प्राचीन स्मारकों में से एक ‘राजमहल’ को 17वीं शताब्दी में मधुकर शाह ने बनवाया था। चतुर्भुज आकार का यह महल अपनी शिल्प कला तथा भित्तिचित्रों के लिए प्रसिद्ध है।
जहांगीर महल- बुन्देलों और मुगल शासक जहांगीर की दोस्ती की निशानी है जहांगीर महल। जहांगीर महल के प्रवेश द्वार पर दो झुके हुए हाथी बने हुए हैं जो अपने आप में वास्तुकला का बेहतरीन नमूना है।
चतुर्भुज मंदिर- कमल की आकृति और अन्य आकृतियों से परिपूर्ण यह मंदिर चार भुजाधारी भगवान विष्णु को समर्पित है। इस मंदिर का निर्माण 1558 से 1573 के बीच राजा मधुकर ने करवाया था। अपने समय की यह उत्कृष्ठ रचना यूरोपीय कैथोड्रल से समान है।
फूलबाग मंदिर- और महलों के अलावा आप ओरछा में बुन्देल राजाओं द्वारा बनवाया गया फूलों का बगीचा भी देख सकते हैं। पालकी महल के निकट स्थित यह बाग बुन्देल राजाओं का आरामगाह था। वर्तमान में यह पिकनिक स्थल बना हुआ है।