November 23, 2024     Select Language
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जब सोने के लंका का मालिक एक बच्चे का पेट भी नहीं भर पाये  

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कोलकाता टाइम्स : 

भारतीय पौराणिक कथाओं में कुबेर का स्थान धन के देवता के रूप में है, पर वास्तव में वह देवता ना होकर गंधर्व हैं। माना जाता है कि कुबेर के पास संसार का सारा स्वर्ण भंडार है। लोक मान्यता है रामायण में वर्णित सोने की लंका रावण की थी, लेकिन सच्चाई यह है कि इस सोने की लंका का निर्माण कुबेर ने करवाया था। कहीं आपके घर में तो नहीं होती ऐसी घटनाएं…? रावण कुबेर का सौतेला भाई था और शक्ति संपन्न होने के बाद उसने सोने की लंका कुबेर से छीन ली थी।

इसी सुवर्ण लंका के निर्माण और उससे कुबेर में उपजे घमंड से जुड़ी एक रोचक कथा आज सुनते हैं…

अक्षत भंडार बात उस समय की है जब कुबेर के पास स्वर्ण का अक्षत भंडार हो चुका था। अपने स्वर्ण भंडार से गद्गद कुबेर ने सोने की लंका का निर्माण कराया। जैसा कि स्वाभाविक है, सोने की लंका बनवाने के बाद अपने ऐश्वर्य का प्रदर्शन करने के लिए कुबेर का मन फड़फड़ाने लगा। उसने अपने वैभव का प्रदर्शन करने के लिए एक भव्य भोज का आयोजन किया, जिसमें देवता भी शामिल हुए। चारों ओर कुबेर की धन, संपदा और ऐश्वर्य के चर्चे होने लगे। इसके बाद भी उसका गर्वित मन संतुष्ट नहीं हुआ, तो उसने सोचा कि स्वयं परमात्मा को आमंत्रित कर अपने वैभव से चमत्कृत किया जाए। भोले भंडारी भगवान शिव इसलिए पहले उसने भगवान विष्णु को आमंत्रित करने का सोचा। इसी के साथ उसे याद आया कि विष्णु जी तो धन की साक्षात स्वरूप मां लक्ष्मी के अधिपति हैं। उनके सामने उसका वैभव कहीं ना ठहर पाएगा। इसके बाद उसने ब्रह्मा जी को बुलाने का सोचा, पर वो ठहरे ज्ञानी। उनका संबंध केवल ज्ञान और शास्त्रों से था। धन- संपदा से उनका कुछ लेना-देना ही ना था, ना ही उन पर उसका कुछ प्रभाव पड़ना था।

इसके बाद भोले भंडारी भगवान शिव को याद कर कुबेर आनंद से सराबोर हो गए। उन्होंने सोचा कि एक व्याघ्रचर्म धारण करने वाले, खुले पहाड़ों में रहने वाले शिव जब उसकी लंका देखेंगे तो उनकी आंखें फटी रह जाएंगी। ऐसा सोचकर कुबेर तुरंत ही शिव जी को आमंत्रित करने चल पड़े। पिता ना सही, बेटा ही सही कुबेर जब शिव जी को आमंत्रित करने कैलाश पर्वत पहुंचे, तब भगवान ध्यान में थे। कुबेर उनके जागने की प्रतीक्षा करने लगे। शिव जी जब ध्यान से उठे, तो कुबेर को देखते ही उनके मन का भाव जान गए और उनकी नादानी पर मुस्कुरा उठे। कुबेर यह ना जान सके कि जिसे कण-कण का भान है, वह उनका भी मन पढ़ सकता है। उन्होंने शिव जी से कहा कि भगवान, मैंने एक छोटा सा घर बनवाया है और मेरी इच्छा है कि आप मेरे घर को अपनी चरणधूलि से पवित्र करें। कृपया मेरे घर पर भोजन का निमंत्रण स्वीकार करें। भगवान शिव ने उन्हें बधाई देते हुए कहा कि अभी तो मैं ना आ सकूंगा। मेरा पुत्र गणेश अवश्य आपके निमंत्रण का मान रखेगा। गणेश जी उस समय किशोर अवस्था में थे। कुबेर ने सोचा कि पिता ना सही, बेटा ही सही। मेरा ऐश्वर्य देखकर अपने घर में कुछ तो चर्चा करेगा। इस प्रकार गणेश जी को भोजन का निमंत्रण देकर वह लंका नगरी लौट आए। वह भूल गया कि गणेश जी भोजन प्रेमी हैं…

दूसरे दिन नियत समय पर गणेश जी अपने वाहन मूषक पर विराजमान होकर कुबेर के यहां उपस्थित हो गए। कुबेर ने उनका स्वागत कर लंका दर्शन का प्रस्ताव रखा। वह भूल गया कि गणेश जी भोजन प्रेमी हैं। गणेश जी ने कहा कि मैं तो भोजन करने आया हूं, आपकी लंका देखने नहीं। भोजन लगवा दीजिए, मुझे भूख लगी है। मन मसोसकर कुबेर जी ने भोजन लगवा दिया, लेकिन गणेश जी की भूख का अंदाजा उसे नहीं था। गणेश जी ने कुबेर के घर का सारा भोजन पलक झपकते ही साफ कर दिया और अधिक मात्रा में भोजन लाने को कहा। धन-ऐश्वर्य और स्वर्ण की लंका का क्या मोल? कुबेर ने अपने महल के समस्त सेवकों को भोजन बनाने और परोसने में लगा दिया, पर गणेश जी की भूख खत्म नहीं हुई। वास्तविकता यह थी कि गणेश जी का पेट माता पार्वती के हाथ से एक कौर खाना खाकर ही भरता था। यहां मां के अभाव में उन्हें पेट भरने का आभास ही नहीं हो रहा था।

आखिर में कुबेर ने हाथ जोड़कर माफी मांग ली और भोजन परोसने में असमर्थता जता दी। गणेश जी बहुत नाराज हुए और बोले कि तुम तो एक व्यक्ति को भरपेट भोजन तक नहीं करा सकते, फिर तुम्हारे इस धन-ऐश्वर्य और स्वर्ण की लंका का क्या मोल? पहले भोजन की व्यवस्था तो कर लेते, फिर निमंत्रण देते। गणेश जी के वचन सुनकर कुबेर शर्म से पानी पानी हो गए। उधर कैलाश पर्वत पर ध्यानस्थ शिव जी ने इस पूरे प्रकरण का भरपूर आनंद लिया

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