इस खास वजह से अच्छा तो इस वजह से फेरों के दौरान दूल्हे के इस ओर ही होती है दुल्हन?
इस धर्म में विवाह की महत्ता को सबसे ऊपर आंका गया है। ऐसा कहा जाता है कि हर रिश्ता आपका साथ छोड़ सकता है लेकिन पति-पत्नी का साथ मरते दम तक रहता है।
इतना ही नहीं हिन्दू धर्म में विवाह तभी संपन्न माना जाता है जब वर-वधु अग्नि को साक्षी मानते हुए उसके इर्द गिर्द सात फेरे लेते हैं। ये सात फेरे आने वाले सात जन्मों के साथ का सूचक माने जाते हैं। इसका अर्थ यह है कि हिन्दू मान्यता में विवाह एक जन्म का नहीं बल्कि सात जन्मों का रिश्ता है।
फेरों की बात चली ही है तो आज विवाह की सबसे मुख्य मानी जाने वाली इसी रस्म की बात करते हैं। विवाह के दौरान लिए जाने वाले फेरों में इस बात को शामिल किया गया है कि वधु, वर के बाईं ओर बैठे, इसीलिए पत्नी को ‘वामांगी’ भी कहा जाता है।
लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि कोई भी धर्मिक अनुष्ठान हो, पत्नी हमेशा अपने पति के बाईं ओर ही क्यों बैठती है? पत्नी का स्थान पति के बाईं ओर ही क्यों माना गया है? अगर अभी तक आपने इस विषय पर नहीं सोचा तो हम आपको इसका जवाब देते हैं। दरअसल शरीर और ज्योतिष, दोनों में विज्ञान में पुरुष के दाएं और स्त्री के बाएं भाग को शुभ और पवित्र माना गया है।
आपने ये बात तो जरूर देखी होगी कि हस्तरेखा शास्त्र में भी महिलाओं का बायां और पुरुष का दायां हाथ ही देखा जाता है। शरीर विज्ञान के अनुसार मनुष्य के शरीर का बायां हिस्सा मस्तिष्क की रचनात्मकता और दायां हिस्सा उसके कर्म का प्रतीक है।
आमतौर पर भी यही देखा जाता है कि स्त्री का स्वभाव प्रेम और ममता से भरा होता है और यह तभी संभव है जब उसके भीतर रचनात्मकता हो। स्त्री का बाईं ओर होना प्रेम और रचनात्मकता की निशानी है वहीं दाईं ओर पुरुष की मौजूदगी दर्शाती है कि पूजा कर्म या शुभ कर्म में वह दृढ़ता से उपस्थित है। जब भी कोई शुभ कार्य दृढ़ता और रचनात्मकता के मेल के साथ संपन्न किया जाता है तो यह निश्चित है कि उसमें सफलता अवश्य मिलेगी।
यही कारण है कि विवाह समेत किसी भी शुभ अवसर या धार्मिक कार्यक्रम में पत्नी को पुरुष के बाईं ओर ही बैठाया जाता है।