जानते हैं हिन्दू होते भी क्यों दफनाए जाते हैं साधु और बच्चों के शव?
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कोलकाता टाइम्स :
हिंदू धर्म में किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद आत्मा की शांति के लिए शवों का अंतिम संस्कार करते हुए शव को जला दिया जाता है, लेकिन जब किसी संत या बच्चे की बात आती है तो उनकी लाशों को जलाने के बदले दफना दिया जाता है। मृत्यु जीवन का एक महत्वपूर्ण तथ्य है जिसे न तो कोई टाल सकता है और न ही वहां से वापस लौट सकता है। इस संसार में जन्म लेने वाले सभी की मृत्यु भी निश्चित है। हर व्यक्ति के मृत्यु के बाद उसके धर्म के अनुसार अंतिम संस्कार किए जाते हैं। कहीं शवों को दफना दिया जाता है, तो कहीं दाह संस्कार की प्रथा का पालन किया जाता है।
आपको बता दें कि हिंदू धर्म में व्यक्ति के मृत्यु के बाद शव का अंतिम संस्कार कर राख को फिर नदी में बहा दिया जाता है लेकिन अगर बात संतों या बच्चों की हो तो उनके शवों को दफन किया जाता है। क्या आपने कभी सोचा है कि ऐसा क्यों किया जाता है?
दरअसल संतों द्वारा शरीर की बलि देने के बाद उनकी लाशों को दफनाने के पीछे यह मान्यता है कि संत आम लोगों की तुलना में भगवान के ज्यादा करीब होते हैं। उनमें सर्वोच्च मानवीय गुण हैं शायद इसीलिए वह दिव्य पथ पर आम लोगों से हमेशा आगे रहते हैं। समाज में उन्हें अन्य सामान्य मनुष्यों की अपेक्षा अधिक सम्मान दिया जाता है। अब बात अगर बच्चों की करें तो बच्चे भी फरिश्ते के समान होते हैं। उसका मन शुद्ध है। इसमें कोई सांसारिक धोखा नहीं है। सन्त की भाँति बच्चे पवित्र अवस्था में होते हैं। इस कारण बच्चों को भी दफनाया जाता है।