November 23, 2024     Select Language
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भौम या अग्नि कौन सा है आपका स्नान ? जरूर जाने 

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कोलकाता टाइम्स :

प्रातः काल उठकर सबसे पहले हम शौच आदि से निवृत होकर स्नान करते है फिर अपने इष्टदेव की आराधना करते है और उसके बाद अपनी जीविकापार्जन के लिए कर्म करते है। आत्मा को स्वच्छ व सुन्दर बनाने के लिए आत्म चिन्तन करना चाहिए तो तन को स्वस्थ्य एंव आकर्षक बनाने के लिए स्नान करना जरूरी है। नौं छिद्रों वाले अत्यन्त मलिन शरीर से दिन-रात मल निकलता रहता है, अतः प्रातःकाल स्नान करने से शरीर की शुद्धि होती है। रूप, तेज, बल, पवित्रता, अरोग्य, निर्लोभता, दुःस्वप्न का नाश, तप और मेघा- ये दस गुण प्रातःकाल स्नान करने वाले मनुष्यों को प्राप्त होते है।

स्नान के सात प्रकार होते है-

मन्त्र स्नान-  ‘आपो हिष्ठा’ इत्यादि मन्त्रों से मार्जन करना।

अग्नि स्नान- अग्नि की राख पूरे शरीर में लगाना जिसे भस्म स्नान कहा जाता है।

भौम स्नान- पूरे शरीर में मिटटी लगाने को भौम स्नान कहते है।

वायव्य स्नान- गाय के खुर की धूलि लगाने को वायव्य स्नान कहते है।

मानसिक स्नान- आत्म चिन्तन करना एंव निम्न मन्त्र ऊॅ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोपि वा। यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्रााभ्यन्तरः शुचि।। अतिनीलघनश्यामं नलिनायतलोचनम्। स्मरामि पुण्डरीकाक्षं तेन स्नातो भवाम्यहम्ं।। को पढ़कर अपने शरीर पर जल छिड़कने को मानसिक स्नान कहते है।

वरूण स्नान- जल में डुबकी लगाकर स्नान करने को वरूण स्नान कहते है।

दिव्य स्नान- सूर्य की किरणों में वर्षा के जल से स्नान करना दिव्य स्नान कहलाता है। जो लोग स्नान करने में असमर्थ है, उन्हे सिर के नीचे से ही स्नान कर लेना चाहिए अथवा गीले वस्त्र से शरीर को पोंछ लेना भी एक प्रकार का स्नान कहा गया है।

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