November 23, 2024     Select Language
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रात में जन्म है तो पड़ेगा ग्रह के इस बल प्रभाव

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कोलकाता टाइम्स :  

वैदिक ज्योतिष में ग्रहों के छह प्रकार के बल बताए गए हैं। स्थानबल, दिग्बल, कालबल, नैसर्गिकबल, चेष्टाबल और दृग्बल। किसी भी जन्मकुंडली का विश्लेषण करने के लिए ग्रहों के बलों का अध्ययन करना अत्यंत आवश्यक होता है। इन्हें जाने बिना कुंडली का फल कथन निरर्थक होता है।

स्थानबल : जो ग्रह उच्च, स्वगृही, मित्रगृही, मूल त्रिकोणस्थ, स्व नवांशस्थ या द्रेष्काणस्थ होता है वह स्थानबली कहलाता है। चंद्रमा, शुक्र समराशि में और अन्य ग्रह विषमराशि में बली होते हैं।

दिग्बल : बुध और गुरु लग्न में रहने से, शुक्र और चंद्रमा चतुर्थ में रहने से, शनि सप्तम में रहने से और सूर्य व मंगल दशम स्थान में रहने से दिग्बली होते हैं। लग्न पूर्व, दशम दक्षिण, सप्तम पश्चिम और चतुर्थ भाव उत्तर दिशा में होते हैं। इसी कारण उन स्थानों में ग्रहों का रहना दिग्बल कहलाता है।

कालबल : रात में जन्म होने पर चंद्र, शनि, मंगल और दिन में जन्म होने पर सूर्य, बुध, शुक्र कालबली होते हैं। अनेक विद्वानों ने बुध को सर्वदा कालबली माना है।

नैसर्गिकबल : शनि, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, चंद्र व सूर्य उत्तरोत्तर बली होते हैं।

चेष्टाबल : मकर से मिथुन र्पयत किसी भी राशि में रहने से सूर्य और चंद्रमा चेष्टाबली होते हैं। मंगल, बुध, शुक्र और शनि यदि चंद्रमा के साथ हों तो चेष्टाबली होते हैं।

दृग्बल : शुभ ग्रहों से दृष्ट ग्रह दृग्बली होते हैं।

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