पैसो की कमी ने आरके स्टूडियो बनाने के लिए राज कपूर को किया था यह काम करने पर मजबूर
कोलकाता टाइम्स :
ये कभी किसीने नहीं सोचा होगा कि एक समय ऐसा भी आएगा कि बॉलीवुड को क्लासिक फ़िल्में देने वाला आरके स्टूडियो सिर्फ यादों की पोटली में बंध कर रह जाएगा। इस पोटली में हिंदी सिनेमा की कई कल्ट क्लासिक फ़िल्में जैसे, ‘आग’, ‘बरसात’, ‘आवारा’, ‘श्री 420’, ‘संगम’, ‘मेरा नाम जोकर’, ‘बॉबी’ और ‘राम तेरी गंगा मैली’ शामिल है।
आप सभी जानते होंगे कि कुछ दिनों पहले ही बॉलीवुड के शो मैन कहे जाने वाले राज कपूर द्वारा बनाए गए इस स्टूडियो के बिकने की खबर सामने आई है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार पूरे कपूर खानदान ने आपसी सहमति से इस स्टूडियो को बेचने का फैसला किया है। इन्हीं ख़बरों के बीच एक दिलचस्प कहानी ये भी है कि इस यादगार स्टूडियो को बनाने के लिए राज कपूर ने अपना सबकुछ लगा दिया था। रेडियो सिटी के साथ एक इंटरव्यू में ऋषि कपूर ने इस यादगार ारके स्टूडियो के बनने की कहानी साझा की है और बताया है कि कैसे उनके पिता राज कपूर ने पहले इस स्टूडियो की चार दीवार बनाई और कैसे अपनी मेहनत और लगन से इसकी छत का निर्माण किया।
जब राज कपूर साहब इस स्टूडियो को बनाने की जद्दोजहद में लगे थे तब उनकी मां ने उनसे कहा था कि स्टूडियो क्यों बना रहे हो, पहले घर बनाओ… इस पर राज कपूर ने कहा था, “मां जिनके स्टूडियो बनते हैं उनके घर भी बनते हैं मगर, जिनके घर बनते हैं उनके स्टूडियो कभी नहीं बन पाते।” ऋषि कपूर कहते हैं कि राज कपूर साहब ने अपना सबकुछ इस स्टूडियो में लगा दिया था। जब वो फ़िल्म ‘आवारा’ बना रहे थे उसीके साथ उन्होंने आरके स्टूडियो भी बनाया। मगर, उस समय उनके पास इस स्टूडियो के लिए सिर्फ चार दीवार खड़ी करने के पैसे थे, छत के नहीं। ‘आवारा’ फ़िल्म का मशहूर गाना ‘घर आया मेरा परदेसी…’ की शूटिंग 32 दिनों तक चली क्यूंकि आरके स्टूडियो में छत नहीं थी इसलिए इसकी शूटिंग रात को 9 बजे से लेकर सुबह 5 बजे तक लाइट्स लगा कर होती थी। यही नहीं दिन में पिताजी दूसरों के लिए फ़िल्म में एक्टिंग करते और पैसे जमा करते, और इसी तरह उन्होंने पैसे जोड़-जोड़ कर आरके स्टूडियो की छत बनाई। ये कहानी है ‘आरके स्टूडियो’ की और इसीलिए वो ‘राज कपूर’ हैं।
ऋषि इंटरव्यू में आगे कहते हैं कि मेरी मां के पास अपना घर नहीं था, अपनी छत नहीं थी मगर, RK Studio था। हमें घर मिला 1974 में, जबकि राज कपूर साहब 1946 से काम कर रहे थे। ‘मेरा नाम जोकर’ के बाद सब कुछ नीलाम हो गया, क्यूंकि राज कपूर साहब अपना सबकुछ फ़िल्मों के नाम कर देते थे।