अब इंटरनेट बना जंगली जानवरों का बड़ा गैरकानूनी बाजार
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न्यूज डेस्क
इंटरनेट ने सिर्फ इंसानों की, बल्कि जानवरों की जिंदगी में भी दखल बना लिया है। अब तक इंटरनेट में इंसान के इस्तेमाल की जानेवाली सामान ही बिका करता था लेकिन अब इंटरनेट पर वन्यजीवों का बाजार लगने लगा है संरक्षित। एक रिपोर्ट के मुताबिक इंटरनेट पर संरक्षित वन्यजीवों का बाजार तेजी से बढ़ा है और महंगे दामों में इनकी खरीद-फरोख्त हो रही है।
वन्यजीवों के संरक्षण से जुड़ी गैरसरकारी संस्था इंटरनेशनल फंड फॉर एनिमल वेलफेयर (आईएफएडब्ल्यू) ने अपनी रिपोर्ट में इस मामले पर रोशनी डाली है। संस्था ने कहा कि हाथी दांत, तेंदुए की खाल से बने कोट से लेकर कछुए और जीवित भालू समेत तमाम तरह के पशु इंटरनेट पर बिक रहे हैं।
संस्था ने रूस, फ्रांस, जर्मनी और ब्रिटेन जैसे देशों में जानवरों से जुड़ी जानकारी को जुटाने में तकरीबन छह हफ्ते का वक्त लिया। विशेषज्ञों ने देखा कि इंटरनेट पर विलुप्त होने के खतरे से जूझ रहे पशुओं की खरीद-फरोख्त पर तमाम विज्ञापन हैं जिनमें पशुओं के जिंदा, मृत, टुकड़ों तक की पेशकश की गई है।
ऐसे करीब 11,772 जानवर और इनसे जुड़ी सामग्री इंटरनेट पर बिक रही है। ऐसे करीब पांच हजार से भी ज्यादा विज्ञापन वेबसाइट और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों पर चल रहे हैं। इनकी कीमत भी कुल 40 लाख डॉलर के करीब बैठती है।
रिपोर्ट में कहा गया है बड़ी संख्या जिंदा पशुओं की भी है, जिसमें मीठे-पानी में रहने वाले कछुए (45 फीसदी), चिड़िया (24 फीसदी) और स्तनपायी जीव (5 फीसदी) है। आईएफएडब्ल्यू के मुताबिक ऐसी खरीद-फरोख्त, कन्वेंशन ऑफ इंटरनेशनल ट्रेड इन एनडेंजर स्पीशीज (सीआईटीइएस) के एक खास परमिट के तहत संभव है लेकिन इन मामलों में ऐसा नहीं है।
संस्था अपनी जांच के आधार पर दावा करती है कि इंटरनेट पर पेश की जा रही ये खरीद-फरोख्त गैरकानूनी है। अमेरिका की गैरसरकारी संस्था वाइल्ड क्राइम कहती है कि इंटरनेट ने वैश्विक अर्थव्यवस्था को तेजी से बदला है, जिसके चलते गैरकानूनी जीव व्यापार का तौर-तरीका भी बदल गया है।
ये संस्थाएं कहती हैं कि वन्यजीव अपराध अब ऑनलाइन स्पेस की ओर मुड़ गया है। कछुओं के अलावा, सरीसृपों में सांप, छिपकली, घड़ियाल की भी इस काले बाजार में काफी मांग है। उल्लू समेत अन्य पक्षियों में सारस, रंगबिरंगा टूकन भी इस ई-मार्केट में उपलब्ध है।