भगवान गणेश के कटे सिर के दर्शन करना हो तो इस गुफा में जाये
इस गुफा की आश्चर्यजनक कहानी…
यहां है गणेश जी का कटा मस्तक:
हिंदू धर्म में भगवान गणेशजी को प्रथम पूज्य माना गया है. गणेशजी के जन्म के बारे में कई कथाएं प्रचलित हैं. कहा जाता है कि एक बार भगवान शिव ने क्रोधवश गणेशजी का सिर धड़ से अलग कर दिया था, बाद में माता पार्वतीजी के कहने पर भगवान गणेश को हाथी का मस्तक लगाया गया था, लेकिन जो मस्तक शरीर से अलग किया गया, वह शिव ने इस गुफा में रख दिया.
भगवान शिव ने की 108 पंखुड़ियों वाले कमल की स्थापना:
पाताल भुवनेश्वर गुफा में भगवान गणेश की शिलारूपी मूर्ति के ठीक ऊपर 108 पंखुड़ियों वाला शवाष्टक दल ब्रह्मकमल सुशोभित है. इससे ब्रह्मकमल से पानी भगवान गणेश के शिलारूपी मस्तक पर दिव्य बूंद टपकती है. मुख्य बूंद आदिगणेश के मुख में गिरती हुई दिखाई देती है. मान्यता है कि यह ब्रह्मकमल भगवान शिव ने ही यहां स्थापित किया था
पत्थर बताता है कब होगा कलयुग का अंत:
इस गुफाओं में चारों युगों के प्रतीक रूप में चार पत्थर स्थापित हैं. इनमें से एक पत्थर जिसे कलियुग का प्रतीक माना जाता है, वह धीरे-धीरे ऊपर उठ रहा है. माना जाता है कि जिस दिन यह कलियुग का प्रतीक पत्थर दीवार से टकरा जाएगा, उस दिन कलियुग का अंत हो जाएगा.
गुफा में मौजूद हैं केदारनाथ, बद्रीनाथ और अमरनाथ भी:
यहीं पर केदारनाथ, बद्रीनाथ और अमरनाथ के भी दर्शन होते हैं. बद्रीनाथ में बद्री पंचायत की शिलारूप मूर्तियां हैं जिनमें यम-कुबेर, वरुण, लक्ष्मी, गणेश तथा गरुड़ शामिल हैं. तक्षक नाग की आकृति भी गुफा में बनी चट्टान में नजर आती है. इस पंचायत के ऊपर बाबा अमरनाथ की गुफा है तथा पत्थर की बड़ी-बड़ी जटाएं फैली हुई हैं. इसी गुफा में कालभैरव की जीभ के दर्शन होते हैं. इसके बारे में मान्यता है कि मनुष्य कालभैरव के मुंह से गर्भ में प्रवेश कर पूंछ तक पहुंच जाए तो उसे मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है.
पौराणिक महत्व:
स्कंदपुराण में वर्णन है कि स्वयं महादेव शिव पाताल भुवनेश्वर में विराजमान रहते हैं और अन्य देवी-देवता उनकी स्तुति करने यहां आते हैं. यह भी बताया गया है कि त्रेता युग में अयोध्या के सूर्यवंशी राजा ऋतुपर्ण जब एक जंगली हिरण का पीछा करते हुए इस गुफा में आ गए थे तो उन्होंने इस गुफा के अंदर महादेव शिव सहित 33 कोटि देवताओं के साक्षात दर्शन किए थे.
द्वापर युग में पाण्डवों ने यहां चौपड़ खेला और कलयुग में जगदगुरु आदि शंकराचार्य का 822 ई. के आसपास इस गुफा से साक्षात्कार हुआ तो उन्होंने यहां तांबे का एक शिवलिंग स्थापित किया.